अनुकूलनशीलता का वर्ष

न्यूयॉर्क – दस साल पहले इसी महीने में, जापान के ह्योगो प्रान्त की राजधानी कोबे में संयुक्त राष्ट्र के सदस्य राज्यों के 168 प्रतिनिधि यह तय करने के लिए मिले कि हिंद महासागर की विनाशकारी सूनामी का बेहतर जोखिम प्रबंधन कैसे किया जाए जिसमें 227,000 से अधिक लोगों की जान गई थी। पाँच दिनों के दौरान, जिसमें 1995 में कोबे में आए भूकंप की सालगिरह शामिल थी, उन्होंने कार्रवाई के लिए ह्योगो फ्रेमवर्क (HFA) तैयार किया, जिसमें "जीवनों और समुदायों और देशों की सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय परिसंपत्तियों की क्षति को कम करने के लिए" अनेक उपाय शामिल किए गए।

दो महीनों में, संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देश आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिए तीसरे विश्व सम्मेलन के लिए एक और जापानी शहर में मिलेंगे जो आपदा जोखिम का पर्याय बन चुका है: सेंडाइ - यह तोहोकू क्षेत्र का केंद्र है, जिसे 2011 में आए भूकंप और सूनामी का आघात सहना पड़ा जिसके फलस्वरूप फुकुशिमा परमाणु संयंत्र में रिसाव की स्थिति उत्पन्न हुई। बैठक में हर किसी के दिमाग में एक सवाल होगा: क्या दुनिया HFA के महत्वाकांक्षी लक्ष्य पर खरी उतरी है?

पिछले एक दशक में जो कुछ भी घटा वह बिलकुल अनुकूल नहीं रहा है -  इस अवधि में अत्यधिक भयंकर प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ा। पोर्ट-ओ-प्रिंस एक भूकंप में ध्वस्त हो गया। तूफान कैटरीना ने न्यू ऑरलियन्स को उजाड़ दिया। सूखे से अफ्रीका के हॉर्न में असंख्य लोग मारे गए। बाढ़ और भूकंप से पाकिस्तान और चीन में लाखों लोग प्रभावित हुए। गर्म हवाओं और जंगल की आग ने दुनिया भर के देशों में तबाही मचा दी।

इन आपदाओं से हमें HFA जैसे साधनों की आवश्यकता के बारे में भारी चेतावनी मिलती है, विशेष रूप से इसलिए कि आपदा जोखिम के कारकों - भूमि का अनुचित उपयोग, अस्तित्वहीन या ठीक तरह से लागू न किए गए भवन-निर्माण कोड, पर्यावरण क्षरण, गरीबी, जलवायु परिवर्तन, और, सबसे महत्वपूर्ण, अनुपयुक्त और अपर्याप्त संस्थाओं द्वारा कमजोर नियंत्रण – की अभी भी भरमार है। यही कारण है कि दुनिया के नेताओं को सेंडाइ सम्मेलन में HFA के अद्यतित संस्करण पर सहमत होने की जरूरत है।

निश्चित रूप से, पिछले दस वर्षों में कुछ महत्वपूर्ण सफलताएँ मिली हैं, जिनकी ओर अपेक्षाकृत कम ध्यान गया है। दुनिया की आपदाओं का 80% एशिया में केंद्रित है, जहाँ सीधे प्रभावित होनेवाले लोगों की संख्या में दशक-दर-दशक लगभग एक अरब तक की कमी हुई है, यह हिंद महासागर में सुनामी जैसी प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली जैसे उपायों के कारण हुआ है।

वास्तव में, भारी तूफ़ान के बारे में ठीक-ठीक भविष्यवाणी करने की प्रणालियों के फलस्वरूप लोगों को समय पर निकाल लेने के कारण फिलीपींस और भारत अभी पिछले वर्ष ही हजारों जीवन बचाने में सफल हुए हैं। और, पिछले तीन वर्षों में, चीन ने आर्थिक हानियों को अपने जीडीपी लक्ष्य के 1.5% के भीतर रखने के लिए जी-तोड़ मेहनत की है।

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इस बीच, टर्की वर्ष 2017 तक देश के हर स्कूल और अस्पताल को भूकंप-रोधी बना चुका होगा। इथियोपिया न केवल सूखे बल्कि अन्य प्राकृतिक खतरों का भी पता लगाने के अपने प्रयासों में मदद प्राप्त करने के लिए परिष्कृत डेटा प्रबंधन प्रणाली विकसित कर चुका है। दोनों देश - और कई अन्य देश भी - अपने विद्यालय पाठ्यक्रमों में आपदा जोखिम अध्ययन को शामिल कर चुके हैं।

लैटिन अमेरिका में, इक्वाडोर में किए गए एक लागत लाभ विश्लेषण से यह निष्कर्ष निकला है कि बाढ़ और तूफानों से बार-बार होनेवाली हानियों को दूर करने के लिए, आपदा जोखिम में कमी करने हेतु निवेश किए गए प्रत्येक डॉलर से अंततः $9.50 की बचत होती है। इसी तरह, यूरोपीय संघ का अनुमान है कि बाढ़ सुरक्षा पर खर्च किए गए प्रत्येक 1€ ($1.18) से 6€ की बचत होती है।

उदाहरण के लिए, यूनाइटेड किंगडम में, बाढ़ सुरक्षा में निवेश करने से पिछली सर्दियों के तूफानों के दौरान 8,00,000 परिसंपत्तियों को बचाया जा सका जिसके फलस्वरूप आवश्यक कार्रवाई करने और स्थिति बहाल करने के खर्च में भारी कमी की जा सकी।

लेकिन और बहुत कुछ किया जाना चाहिए। पिछले 44 वर्षों में, मौसम, जलवायु, और जल-संबंधी खतरों के कारण हुई आपदाओं के फलस्वरूप 3.5 मिलियन लोगों की मृत्यु हुई। हालाँकि आपदा-संबंधी मृत्यु दर को कम करने के मामले में प्रगति हुई है - आपदाओं के महामारी विज्ञान संबंधी अनुसंधान केंद्र के अनुसार, आपदाओं में वृद्धि होने के बावजूद, पिछले दशक में आपदा से संबंधित मौतों की संख्या में बहुत अधिक वृद्धि नहीं हुई है - फिर भी यह संख्या बहुत अधिक बनी हुई है।

इसके अलावा, जहाँ लोगों के जीवन बचाए भी जा रहे हैं, वहाँ भी अक्सर उनकी आजीविकाएँ नष्ट हो रही हैं। 1960 के बाद से, आपदाओं से दुनिया को $3.5 ट्रिलियन से अधिक की हानि हुई है, इसमें विकसित और विकासशील देशों दोनों को ही उत्पादकता में हानि और बुनियादी ढाँचे के क्षतिग्रस्त होने कारण बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है।

यही वजह है कि सेंडाइ में आगामी संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में दुनिया के नेताओं को संशोधित HFA के माध्यम से, इस बात के लिए सहमत होना चाहिए कि वे समुद्र के बढ़ते स्तर, ग्लोबल वार्मिंग, अनियंत्रित शहरीकरण, और तीव्र जनसंख्या वृद्धि से उत्पन्न खतरों से निपटने के लिए अपने प्रयासों को बढ़ाएँगे। उच्चतम स्तर पर दृढ़ राजनीतिक प्रतिबद्धता होने पर ही सुरक्षित, अधिक टिकाऊ भविष्य की दिशा में वास्तविक प्रगति की जा सकती है।

संशोधित HFA के लिए समर्थन हासिल करना मुश्किल नहीं होना चाहिए। फिर भी, इस बात के लिए कोई दमदार, या तर्कसंगत, कारण नज़र नहीं आता है कि कोई वित्त मंत्री या मुख्य कार्यपालक अधिकारी स्थिति को बहाल करने पर तो खर्च करना पसंद करेगा परंतु रोकथाम में निवेश करने के लिए नहीं।

दुनिया के लिए यह सही समय है कि आपदाओं से बचाव को औद्योगीकरण की प्रक्रिया और कस्बों और शहरों के विकास से जोड़ा जाए जिसमें भूकंप के खतरों, बाढ़ संभावित मैदानी इलाकों, तटीय कटाव, और पर्यावरण क्षरण जैसे कारकों को समाहित किया जाए। यदि संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में उचित समझौते को तैयार कर लिया जाता है, तो अनुकूलनशीलता 2015 की पहचान बन सकती है, और यह इस वर्ष बाद में जलवायु परिवर्तन और सतत विकास पर होनेवाले समझौतों के स्वरूप को तय करेगा - आपदा जोखिम के लिए इन दोनों के ही महत्वपूर्ण निहितार्थ हैं।

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