पॉट्सडैम – चुपचाप एक क्रांति हो रही है। नवंबर में, दुबई ने घोषणा की कि एक ऐसे सौर ऊर्जा पार्क का निर्माण किया जा रहा है जो $0.06 प्रति-किलोवाट-घंटे से भी कम की दर पर विद्युत का उत्पादन करेगा – यह गैस या कोयला आधारित बिजली संयंत्र के वैकल्पिक निवेश के विकल्प की लागत से बहुत कम है।
यह संयंत्र - जिसके 2017 में चालू हो जाने की आशा है – एक और ऐसे भविष्य का सूचक है जिसमें नवीकरणीय ऊर्जा हमारे पारंपरिक जीवाश्म ईंधनों को बाहर कर देगी। वास्तव में, मुश्किल से कोई सप्ताह ऐसा होता होगा जिसमें सौर ऊर्जा संयंत्र के निर्माण के लिए कोई बड़ा सौदा किए जाने की खबर न होती हो। अकेले फरवरी में, नाइजीरिया (1,000 मेगावाट), ऑस्ट्रेलिया (2,000 मेगावाट), और भारत (10,000 मेगावाट) में नई सौर विद्युत परियोजनाओं की घोषणाएँ की गईं।
इसमें कतई संदेह नहीं किया जा सकता कि ये घटनाएँ जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई के लिए अच्छी हैं। लेकिन उन्हें प्रोत्साहित करनेवाली प्रमुख सोच पर्यावरण न होकर लाभ है क्योंकि ऊर्जा वितरण में बढ़ी हुई दक्षता और, जहाँ आवश्यक हो, भंडारण के फलस्वरूप, नवीकरणीय ऊर्जा के उत्पादन की लागत कम हो जाती है।
जैसे-जैसे उतार-चढ़ाव वाले स्रोतों से बिजली के प्रबंधन में सुधार के प्रयासों के फलस्वरूप और अधिक प्रगति होगी, सौर विद्युत की लागत में गिरावट होना जारी रहेगा। फ़्रॉनहोफ़र इन्स्टीट्यूट फ़ॉर सोलर एनर्जी सिस्टम्स (थिंक टैंक अगोरा एनर्जीविंड द्वारा संचालित) द्वारा हाल ही में किए गए अध्ययन के अनुसार, दस वर्षों के भीतर, दुनिया भर में बहुत से क्षेत्रों में इसका उत्पादन 4-6 सेंट प्रति किलोवाट-घंटे की दर पर होगा। 2050 तक, उत्पादन लागतें कम होकर 2-4 सेंट प्रति किलोवाट-घंटे तक हो जाएँगी।
जैसा कि अगोरा के कार्यपालक निदेशक पैट्रिक ग्राइचेन बताते हैं, दुनिया में भविष्य की ऊर्जा आपूर्ति के बारे में लगाए गए अधिकतर पूर्वानुमानों में सौर विद्युत को अपने जीवाश्म ईंधन के प्रतिस्पर्धियों पर दर्ज की जा रही भारी जीत को ध्यान में नहीं रखा जा रहा है। उन्हें अद्यतन करने पर, उनकी लागतों और हमारे ऊर्जा उत्पादन और खपत का दुनिया की जलवायु पर प्रभाव का वास्तविक चित्र हमारे सामने आएगा जिससे आर्थिक विकास में नवीकरणीय ऊर्जा के महत्व का पता चलेगा, और ऊर्जा के बुनियादी ढाँचे की बेहतर रूप से आयोजना करने में मदद मिलेगी।
धूप और हवा में वैश्विक संपत्ति के निर्माण और गरीबी से लड़ने की जो जबर्दस्त क्षमता है हमें उसे नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। सौर ऊर्जा ज्यों-ज्यों और अधिक किफ़ायती होती जाएगी, इस ग्रह की सौर परिधि के भीतर स्थित देश एकदम नए व्यापार मॉडल विकसित कर सकते हैं क्योंकि सस्ती, स्वच्छ ऊर्जा से वे अपने कच्चे माल को स्थानीय रूप से संसाधित कर सकते हैं, और निर्यात करने से पहले उनमें मूल्य - और लाभ - जोड़ सकते हैं।
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बड़े पैमाने के पारंपरिक बिजली संयंत्रों के विपरीत, सौर संस्थापनाएँ महीनों में तैयार की जा सकती हैं; किफ़ायती होने के अलावा, वे बढ़ती वैश्विक मांग को शीघ्र पूरा करने के लिए एक साधन उपलब्ध करती हैं। और, क्योंकि सौर ऊर्जा संयंत्रों को आम तौर पर जटिल अंतर-क्षेत्रीय बिजली ग्रिडों के बिना स्वतंत्र रूप से प्रचालित किया जा सकता है, वे कम विकसित देशों को महंगे नए बुनियादी ढाँचे के निर्माण के बिना अपनी अर्थव्यवस्थाओं को ऊर्जित करने के लिए एक ज़रिया प्रदान करते हैं।
इस प्रकार, सौर विद्युत संयंत्र ऊर्जा के लिए वही भूमिका निभा सकते हैं जो मोबाइल फोनों ने दूरसंचार के लिए निभाई थी: केबलों और उनसे संबद्ध बुनियादी ढाँचे में निवेश की जरूरत के बिना, कम आबादी वाले क्षेत्रों में बड़े, कम सुविधावाले समुदायों तक पहुँचना जो पहले कभी आवश्यक हुआ करता था। अफ्रीका में, 66% आबादी को 2000 से इलेक्ट्रॉनिक संचार तक पहुँच मिली हुई है। इसका कोई कारण नहीं है बिजली तक पहुँच के लिए उसी तरह सौर ऊर्जा भी क्यों न काम करे।
बड़े पैमाने पर सौर ऊर्जा उत्पादन में निवेश करने के लिए समय अब है। शुरूआत करनेवालों के लिए, सौर बिजली संयंत्रों के निर्माण की लागतें अंततः इतनी अधिक कम हैं कि उनसे बिजली का उत्पादन प्रतिस्पर्धात्मक रूप से 25 साल से अधिक समय तक के लिए स्थिर मूल्य पर किया जा सकता है। तेल की कीमत फिलहाल कम ज़रूर हो गई है, लेकिन यह फिर बढ़ जाएगी। सौर ऊर्जा संयंत्र जीवाश्म ईंधनों में अंतर्निहित मूल्य अस्थिरता के खिलाफ रक्षा प्रदान करते हैं।
इससे भी अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि वर्तमान में कई देशों में पूंजी की लागत बहुत कम है। सौर ऊर्जा संयंत्रों की आर्थिक व्यवहार्यता के लिए यह एक निर्णायक कारक है क्योंकि उनके लिए बहुत कम रखरखाव की जरूरत होती है, लेकिन अपेक्षाकृत अधिक मात्रा में अग्रिम निवेश करने की आवश्यकता होती है। फ़्रॉनहोफ़र के अध्ययन से पता चलता है कि पूंजीगत व्यय में अंतर प्रति-किलोवाट-घंटे की लागतों के लिए उतने ही महत्वपूर्ण हैं जितने कि सूर्य के प्रकाश में अंतरों के लिए। बादलों वाले देश जर्मनी में वर्तमान में सौर ऊर्जा धूप वाले उन क्षेत्रों की तुलना में सस्ती है जिनमें उधार लेने की लागत अधिक है।
किसी देश में उपलब्ध सूर्य के प्रकाश की मात्रा को बदलना असंभव है। लेकिन पूंजी की लागत एक ऐसी चीज़ है जिस पर कोई देश कुछ हद तक नियंत्रण कर सकता है। एक स्थिर कानूनी ढाँचा तैयार करके, अंतर्राष्ट्रीय समझौतों के संदर्भ में ऋण गारंटियाँ प्रदान करके, और केंद्रीय बैंकों को बड़े पैमाने पर निवेश में शामिल करके, सरकारें सौर ऊर्जा को और अधिक सुलभ बनाने में मदद कर सकती हैं।
ऐसे कारक यह स्पष्ट करते हैं कि ऐसा क्यों है कि अंतर्राष्ट्रीय जलवायु नीतियाँ न केवल अधिकाधिक सौर विद्युत पर बल्कि नवीकरणीय ऊर्जा के अन्य रूपों पर भी ध्यान केंद्रित करती हैं। प्रौद्योगिकी सफलताओं के फलस्वरूप जीवाश्म ईंधनों की तुलना में इन ऊर्जा स्रोतों की प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ावा मिला है। परिणामस्वरूप, जो साधन उन्हें अपनाए जाने को अधिक किफायती बनाते हैं, वे जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में हमें उपलब्ध हथियारों में से सबसे महत्वपूर्ण हथियार बनते जा रहे हैं।
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At the end of a year of domestic and international upheaval, Project Syndicate commentators share their favorite books from the past 12 months. Covering a wide array of genres and disciplines, this year’s picks provide fresh perspectives on the defining challenges of our time and how to confront them.
ask Project Syndicate contributors to select the books that resonated with them the most over the past year.
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यह संयंत्र - जिसके 2017 में चालू हो जाने की आशा है – एक और ऐसे भविष्य का सूचक है जिसमें नवीकरणीय ऊर्जा हमारे पारंपरिक जीवाश्म ईंधनों को बाहर कर देगी। वास्तव में, मुश्किल से कोई सप्ताह ऐसा होता होगा जिसमें सौर ऊर्जा संयंत्र के निर्माण के लिए कोई बड़ा सौदा किए जाने की खबर न होती हो। अकेले फरवरी में, नाइजीरिया (1,000 मेगावाट), ऑस्ट्रेलिया (2,000 मेगावाट), और भारत (10,000 मेगावाट) में नई सौर विद्युत परियोजनाओं की घोषणाएँ की गईं।
इसमें कतई संदेह नहीं किया जा सकता कि ये घटनाएँ जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई के लिए अच्छी हैं। लेकिन उन्हें प्रोत्साहित करनेवाली प्रमुख सोच पर्यावरण न होकर लाभ है क्योंकि ऊर्जा वितरण में बढ़ी हुई दक्षता और, जहाँ आवश्यक हो, भंडारण के फलस्वरूप, नवीकरणीय ऊर्जा के उत्पादन की लागत कम हो जाती है।
जैसे-जैसे उतार-चढ़ाव वाले स्रोतों से बिजली के प्रबंधन में सुधार के प्रयासों के फलस्वरूप और अधिक प्रगति होगी, सौर विद्युत की लागत में गिरावट होना जारी रहेगा। फ़्रॉनहोफ़र इन्स्टीट्यूट फ़ॉर सोलर एनर्जी सिस्टम्स (थिंक टैंक अगोरा एनर्जीविंड द्वारा संचालित) द्वारा हाल ही में किए गए अध्ययन के अनुसार, दस वर्षों के भीतर, दुनिया भर में बहुत से क्षेत्रों में इसका उत्पादन 4-6 सेंट प्रति किलोवाट-घंटे की दर पर होगा। 2050 तक, उत्पादन लागतें कम होकर 2-4 सेंट प्रति किलोवाट-घंटे तक हो जाएँगी।
जैसा कि अगोरा के कार्यपालक निदेशक पैट्रिक ग्राइचेन बताते हैं, दुनिया में भविष्य की ऊर्जा आपूर्ति के बारे में लगाए गए अधिकतर पूर्वानुमानों में सौर विद्युत को अपने जीवाश्म ईंधन के प्रतिस्पर्धियों पर दर्ज की जा रही भारी जीत को ध्यान में नहीं रखा जा रहा है। उन्हें अद्यतन करने पर, उनकी लागतों और हमारे ऊर्जा उत्पादन और खपत का दुनिया की जलवायु पर प्रभाव का वास्तविक चित्र हमारे सामने आएगा जिससे आर्थिक विकास में नवीकरणीय ऊर्जा के महत्व का पता चलेगा, और ऊर्जा के बुनियादी ढाँचे की बेहतर रूप से आयोजना करने में मदद मिलेगी।
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इस प्रकार, सौर विद्युत संयंत्र ऊर्जा के लिए वही भूमिका निभा सकते हैं जो मोबाइल फोनों ने दूरसंचार के लिए निभाई थी: केबलों और उनसे संबद्ध बुनियादी ढाँचे में निवेश की जरूरत के बिना, कम आबादी वाले क्षेत्रों में बड़े, कम सुविधावाले समुदायों तक पहुँचना जो पहले कभी आवश्यक हुआ करता था। अफ्रीका में, 66% आबादी को 2000 से इलेक्ट्रॉनिक संचार तक पहुँच मिली हुई है। इसका कोई कारण नहीं है बिजली तक पहुँच के लिए उसी तरह सौर ऊर्जा भी क्यों न काम करे।
बड़े पैमाने पर सौर ऊर्जा उत्पादन में निवेश करने के लिए समय अब है। शुरूआत करनेवालों के लिए, सौर बिजली संयंत्रों के निर्माण की लागतें अंततः इतनी अधिक कम हैं कि उनसे बिजली का उत्पादन प्रतिस्पर्धात्मक रूप से 25 साल से अधिक समय तक के लिए स्थिर मूल्य पर किया जा सकता है। तेल की कीमत फिलहाल कम ज़रूर हो गई है, लेकिन यह फिर बढ़ जाएगी। सौर ऊर्जा संयंत्र जीवाश्म ईंधनों में अंतर्निहित मूल्य अस्थिरता के खिलाफ रक्षा प्रदान करते हैं।
इससे भी अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि वर्तमान में कई देशों में पूंजी की लागत बहुत कम है। सौर ऊर्जा संयंत्रों की आर्थिक व्यवहार्यता के लिए यह एक निर्णायक कारक है क्योंकि उनके लिए बहुत कम रखरखाव की जरूरत होती है, लेकिन अपेक्षाकृत अधिक मात्रा में अग्रिम निवेश करने की आवश्यकता होती है। फ़्रॉनहोफ़र के अध्ययन से पता चलता है कि पूंजीगत व्यय में अंतर प्रति-किलोवाट-घंटे की लागतों के लिए उतने ही महत्वपूर्ण हैं जितने कि सूर्य के प्रकाश में अंतरों के लिए। बादलों वाले देश जर्मनी में वर्तमान में सौर ऊर्जा धूप वाले उन क्षेत्रों की तुलना में सस्ती है जिनमें उधार लेने की लागत अधिक है।
किसी देश में उपलब्ध सूर्य के प्रकाश की मात्रा को बदलना असंभव है। लेकिन पूंजी की लागत एक ऐसी चीज़ है जिस पर कोई देश कुछ हद तक नियंत्रण कर सकता है। एक स्थिर कानूनी ढाँचा तैयार करके, अंतर्राष्ट्रीय समझौतों के संदर्भ में ऋण गारंटियाँ प्रदान करके, और केंद्रीय बैंकों को बड़े पैमाने पर निवेश में शामिल करके, सरकारें सौर ऊर्जा को और अधिक सुलभ बनाने में मदद कर सकती हैं।
ऐसे कारक यह स्पष्ट करते हैं कि ऐसा क्यों है कि अंतर्राष्ट्रीय जलवायु नीतियाँ न केवल अधिकाधिक सौर विद्युत पर बल्कि नवीकरणीय ऊर्जा के अन्य रूपों पर भी ध्यान केंद्रित करती हैं। प्रौद्योगिकी सफलताओं के फलस्वरूप जीवाश्म ईंधनों की तुलना में इन ऊर्जा स्रोतों की प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ावा मिला है। परिणामस्वरूप, जो साधन उन्हें अपनाए जाने को अधिक किफायती बनाते हैं, वे जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में हमें उपलब्ध हथियारों में से सबसे महत्वपूर्ण हथियार बनते जा रहे हैं।