बर्लिन – संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन को उष्णकटिबंधीय वानिकी कार्य योजना आरंभ किए हुए 30 साल हो गए हैं, जो वनों के नुकसान को रोकने के लिए पहली वैश्विक अंतर-सरकारी पहल थी। तब से, वनों की कटाई बेरोकटोक जारी है, और इसे रोकने के लिए नवीनतम अंतरराष्ट्रीय प्रयास - एक पहल जिसे वनों की कटाई और वनों के निम्नीकरण से उत्सर्जन कम करना (आरईडीडी+) के नाम से जाना जाता है –के और अधिक प्रभावी होने की कोई संभावना दिखाई नहीं दे रही है। विडंबना यह है कि दुनिया के वनों की रक्षा करने के बजाय, इन दोनों समझौतों का सबसे उल्लेखनीय परिणाम महंगी परामर्शी रिपोर्टों के पुलिंदे तैयार करने के रूप में दिखाई देता है।
आरईडीडी+ जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन के एक हिस्से के रूप में तैयार किया गया था, और इसके कार्यान्वयन को नियंत्रित करनेवाले समझौते को पेरिस में जलवायु परिवर्तन पर होनेवाले संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के दौरान अंतिम रूप दिए जाने की संभावना है। लेकिन अगर दुनिया के नेता वनों के नुकसान को रोकने के बारे में गंभीर हैं, तो इसके बजाय उन्हें आरईडीडी+ को त्याग देना चाहिए और इसके स्थान पर किसी ऐसे तंत्र को लाना चाहिए जिससे बड़े पैमाने पर वनों की कटाई के अंतर्निहित कारकों पर कार्रवाई की जा सके।
आरईडीडी+ में खामियाँ इस रूप में स्पष्ट हैं कि इससे जिस समस्या को हल करने की अपेक्षा की जाती है वह उसके लिए कौन-सा दृष्टिकोण अपनाता है। इसकी अधिकतर परियोजनाओं में वनों के लोगों और खेतिहर किसानों को वनों की कटाई के मुख्य कारकों के रूप में माना जाता है। ऐसा लगता है कि आरईडीडी परियोजना के विकासकर्ताओं की रुचि विशेष रूप से उन परियोजनाओं में होती है जिनमें पारंपरिक खेती के तरीकों को सीमित करने पर ध्यान केंद्रित किया जाता है, यहाँ तक कि वे वनों की कटाई के असली कारणों: औद्योगिक कृषि के विस्तार, बुनियादी ढाँचे की विशाल परियोजनाओं, बड़े पैमाने पर लकड़ी काटने, और अनियंत्रित खपत से निपटने के प्रयासों से दूर भागते हैं।
इन कमियों के उदाहरणों का उल्लेख सामाजिक बोस्क कार्यक्रम में किया गया है, जो इक्वाडोर में आरईडीडी+ पहल है, जिसमें वन समुदायों और किसानों की खेतीबाड़ी को नियंत्रित करने के प्रयासों में औद्योगिक गतिविधियों की वजह से होनेवाले अधिक बड़े संभावित नुकसान को नजरअंदाज कर दिया जाता है। इस कार्यक्रम के अंतर्गत वन पर निर्भर समुदाय थोड़ी-सी नकद राशियों के बदले में वन उपयोग को सीमित करने के लिए सहमति के रूप में पर्यावरण मंत्रालय के साथ पाँच साल के समझौते पर हस्ताक्षर कर देते हैं। इसके साथ ही, इस कार्यक्रम के दस्तावेजों से यह समझौता उस स्थिति में साफ तौर पर समाप्त हो जाता है जब इसके अधिकारक्षेत्र के अंतर्गत आनेवाला क्षेत्र तेल निकालने या खनन के लिए निर्धारित कर दिया जाता है। आज खेतिहर किसानों को जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई के हिस्से के रूप वनों से वर्जित किया जा रहा है; और कल कंपनियों को जीवाश्म ईंधन निकालने की अनुमति देने के लिए उन्हीं वनों को उखाड़ा जा सकता है, जो समस्या का मूल कारण हैं।
किसानों और वनों के लोगों पर इस प्रकार अदूरदर्शितापूर्वक ध्यान देने और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों और जलवायु वार्ताकारों के एजेंडा में इस दृष्टिकोण की प्रमुखता का होना परेशानी के सबब वाला औचित्य है। इससे यह पता चलता है कि आरईडीडी+ की रुचि वनों की हानि को रोकने में इतनी नहीं है जितनी कि औद्योगीकृत देशों को प्रदूषण जारी रखने की अनुमति देने में है।
इस पहल में अंतर्निहित दृष्टिकोण उत्सर्जन क्रेडिटों के लिए बाजार तैयार करने के एक व्यापक प्रयास का हिस्सा है, जिसमें प्रदूषणकर्ताओं को ग्रीन हाउस गैसों को छोड़ते रहने की अनुमति दी जाएगी, यदि वे यह प्रमाणित करने का प्रमाण-पत्र प्रस्तुत कर सकते हैं कि उन्होंने कहीं अन्यत्र उतनी ही मात्रा में उत्सर्जनों को रोकने के लिए योगदान किया है। आरईडीडी+ द्वारा संरक्षित किए जा रहे वन प्रदूषण फैलाने के लिए इन बिक्रीयोग्य प्रमाणपत्रों के महत्वपूर्ण उत्पादक हैं, जिन्हें कार्बन क्रेडिट के रूप में जाना जाता है। और प्रायोगिक परियोजनाओं के माध्यम से आरईडीडी का कार्यान्वयन इस दृष्टिकोण के पैरोकारों को एजेंडा को आगे बढ़ाने के लिए ठोस नींव प्रदान करता है।
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औद्योगीकृत देशों के लिए, क्योटो प्रोटोकॉल जैसे समझौतों के तहत अपनी अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिए कार्बन क्रेडिट एक आसान तरीका सिद्ध हुए हैं। यदि आरईडीडी क्रेडिट पेरिस में अनुमोदित होते हैं, तो देशों और कंपनियों द्वारा इक्वाडोर या अन्य स्थानों के खेतिहर किसानों को उन पेड़ों की रक्षा करने के लिए भुगतान किया जा सकता है जिनके बारे में आरईडीडी+ जैसे कार्यक्रमों द्वारा दावा किया जाता है कि अन्यथा वे काट दिए गए होते - और इस प्रकार वे अपने यहाँ उत्सर्जनों में कटौती करने के लिए कठिन संरचनात्मक परिवर्तन करने की जरूरत से बच जाते हैं। इन लेन-देनों पर लागू नियमों के तहत, यह तथ्य कोई मायने नहीं रखता है कि वास्तव में उत्सर्जनों में कोई कटौती नहीं की गई है; महत्वपूर्ण बात तो यह है कि प्रदूषण फैलाने के लिए बिक्रीयोग्य अनुमति प्राप्त कर ली गई है।
दुर्भाग्यवश, पेरिस में होनेवाली ऐसी कुछ बैठकों में इस दृष्टिकोण पर प्रश्न उठाने के लिए प्रोत्साहन दिए जाते हैं। सरकारों के लिए, आरईडीडी+ जैसे कार्यक्रम राजनीतिक रूप से महंगे परिवर्तनों से बचने का अवसर प्रदान करते हैं। और नेचर कन्ज़र्वेन्सी, कन्ज़र्वेशन इंटरनेशनल, विश्व वन्यजीव कोष, और वन्यजीव संरक्षण सोसाइटी जैसे अंतरराष्ट्रीय संरक्षण समूहों के लिए, यह कार्यक्रम अंतरराष्ट्रीय विकास और परोपकारी निधियों तक पहुँच प्रदान करता है।
तथापि, इसका सबसे अधिक लाभ उन कंपनियों को होता है जिनकी भूमि के लिए भूख बड़े पैमाने पर वनों की कटाई को प्रेरित कर रही है। जब तक वे आवश्यक कार्बन क्रेडिट प्रस्तुत कर सकते हैं तब तक उन्हें वनों की कटाई जारी रखने की अनुमति देने के अतिरिक्त, आरईडीडी+ प्रभावी रूप से वनों की हानि का दोष उनकी कार्रवाइयों के बजाय उन समुदायों के मत्थे मड़ देता है जिन पर वनों के दीर्घावधि स्वास्थ्य का सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है।
यदि पेरिस में बैठक करनेवाले जलवायु के वार्ताकार वनों की हानि को रोकने और जलवायु परिवर्तन को नियंत्रण में लाने में वास्तव में रुचि रखते हैं, तो उन्हें आरईडीडी+ को बंद कर देना चाहिए और इन समस्याओं के मूल कारणों के संबंध में कार्रवाई करनी चाहिए। वनों के लोगों और खेतिहर किसानों की जिंदगियों और कार्रवाइयों को नियंत्रित करने का प्रयास करने के बजाय, पेरिस में किेए जानेवाले प्रयास में बड़े पैमाने पर वनों की कटाई को समाप्त करने और जीवाश्म ईंधनों को भूमि में पड़े रहने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
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Though the United States has long led the world in advancing basic science and technology, it is hard to see how this can continue under President Donald Trump and the country’s ascendant oligarchy. America’s rejection of Enlightenment values will have dire consequences.
predicts that Donald Trump’s second administration will be defined by its rejection of Enlightenment values.
Will the China hawks in Donald Trump’s administration railroad him into a confrontation that transcends tariffs and embraces financial sanctions of the type the US and the European Union imposed on Russia? If they do, China's leaders will have to decide whether to decouple from the dollar-based international monetary system.
thinks the real choice facing Chinese leaders may be whether to challenge the dollar's hegemony head-on.
बर्लिन – संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन को उष्णकटिबंधीय वानिकी कार्य योजना आरंभ किए हुए 30 साल हो गए हैं, जो वनों के नुकसान को रोकने के लिए पहली वैश्विक अंतर-सरकारी पहल थी। तब से, वनों की कटाई बेरोकटोक जारी है, और इसे रोकने के लिए नवीनतम अंतरराष्ट्रीय प्रयास - एक पहल जिसे वनों की कटाई और वनों के निम्नीकरण से उत्सर्जन कम करना (आरईडीडी+) के नाम से जाना जाता है –के और अधिक प्रभावी होने की कोई संभावना दिखाई नहीं दे रही है। विडंबना यह है कि दुनिया के वनों की रक्षा करने के बजाय, इन दोनों समझौतों का सबसे उल्लेखनीय परिणाम महंगी परामर्शी रिपोर्टों के पुलिंदे तैयार करने के रूप में दिखाई देता है।
आरईडीडी+ जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन के एक हिस्से के रूप में तैयार किया गया था, और इसके कार्यान्वयन को नियंत्रित करनेवाले समझौते को पेरिस में जलवायु परिवर्तन पर होनेवाले संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के दौरान अंतिम रूप दिए जाने की संभावना है। लेकिन अगर दुनिया के नेता वनों के नुकसान को रोकने के बारे में गंभीर हैं, तो इसके बजाय उन्हें आरईडीडी+ को त्याग देना चाहिए और इसके स्थान पर किसी ऐसे तंत्र को लाना चाहिए जिससे बड़े पैमाने पर वनों की कटाई के अंतर्निहित कारकों पर कार्रवाई की जा सके।
आरईडीडी+ में खामियाँ इस रूप में स्पष्ट हैं कि इससे जिस समस्या को हल करने की अपेक्षा की जाती है वह उसके लिए कौन-सा दृष्टिकोण अपनाता है। इसकी अधिकतर परियोजनाओं में वनों के लोगों और खेतिहर किसानों को वनों की कटाई के मुख्य कारकों के रूप में माना जाता है। ऐसा लगता है कि आरईडीडी परियोजना के विकासकर्ताओं की रुचि विशेष रूप से उन परियोजनाओं में होती है जिनमें पारंपरिक खेती के तरीकों को सीमित करने पर ध्यान केंद्रित किया जाता है, यहाँ तक कि वे वनों की कटाई के असली कारणों: औद्योगिक कृषि के विस्तार, बुनियादी ढाँचे की विशाल परियोजनाओं, बड़े पैमाने पर लकड़ी काटने, और अनियंत्रित खपत से निपटने के प्रयासों से दूर भागते हैं।
इन कमियों के उदाहरणों का उल्लेख सामाजिक बोस्क कार्यक्रम में किया गया है, जो इक्वाडोर में आरईडीडी+ पहल है, जिसमें वन समुदायों और किसानों की खेतीबाड़ी को नियंत्रित करने के प्रयासों में औद्योगिक गतिविधियों की वजह से होनेवाले अधिक बड़े संभावित नुकसान को नजरअंदाज कर दिया जाता है। इस कार्यक्रम के अंतर्गत वन पर निर्भर समुदाय थोड़ी-सी नकद राशियों के बदले में वन उपयोग को सीमित करने के लिए सहमति के रूप में पर्यावरण मंत्रालय के साथ पाँच साल के समझौते पर हस्ताक्षर कर देते हैं। इसके साथ ही, इस कार्यक्रम के दस्तावेजों से यह समझौता उस स्थिति में साफ तौर पर समाप्त हो जाता है जब इसके अधिकारक्षेत्र के अंतर्गत आनेवाला क्षेत्र तेल निकालने या खनन के लिए निर्धारित कर दिया जाता है। आज खेतिहर किसानों को जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई के हिस्से के रूप वनों से वर्जित किया जा रहा है; और कल कंपनियों को जीवाश्म ईंधन निकालने की अनुमति देने के लिए उन्हीं वनों को उखाड़ा जा सकता है, जो समस्या का मूल कारण हैं।
किसानों और वनों के लोगों पर इस प्रकार अदूरदर्शितापूर्वक ध्यान देने और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों और जलवायु वार्ताकारों के एजेंडा में इस दृष्टिकोण की प्रमुखता का होना परेशानी के सबब वाला औचित्य है। इससे यह पता चलता है कि आरईडीडी+ की रुचि वनों की हानि को रोकने में इतनी नहीं है जितनी कि औद्योगीकृत देशों को प्रदूषण जारी रखने की अनुमति देने में है।
इस पहल में अंतर्निहित दृष्टिकोण उत्सर्जन क्रेडिटों के लिए बाजार तैयार करने के एक व्यापक प्रयास का हिस्सा है, जिसमें प्रदूषणकर्ताओं को ग्रीन हाउस गैसों को छोड़ते रहने की अनुमति दी जाएगी, यदि वे यह प्रमाणित करने का प्रमाण-पत्र प्रस्तुत कर सकते हैं कि उन्होंने कहीं अन्यत्र उतनी ही मात्रा में उत्सर्जनों को रोकने के लिए योगदान किया है। आरईडीडी+ द्वारा संरक्षित किए जा रहे वन प्रदूषण फैलाने के लिए इन बिक्रीयोग्य प्रमाणपत्रों के महत्वपूर्ण उत्पादक हैं, जिन्हें कार्बन क्रेडिट के रूप में जाना जाता है। और प्रायोगिक परियोजनाओं के माध्यम से आरईडीडी का कार्यान्वयन इस दृष्टिकोण के पैरोकारों को एजेंडा को आगे बढ़ाने के लिए ठोस नींव प्रदान करता है।
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दुर्भाग्यवश, पेरिस में होनेवाली ऐसी कुछ बैठकों में इस दृष्टिकोण पर प्रश्न उठाने के लिए प्रोत्साहन दिए जाते हैं। सरकारों के लिए, आरईडीडी+ जैसे कार्यक्रम राजनीतिक रूप से महंगे परिवर्तनों से बचने का अवसर प्रदान करते हैं। और नेचर कन्ज़र्वेन्सी, कन्ज़र्वेशन इंटरनेशनल, विश्व वन्यजीव कोष, और वन्यजीव संरक्षण सोसाइटी जैसे अंतरराष्ट्रीय संरक्षण समूहों के लिए, यह कार्यक्रम अंतरराष्ट्रीय विकास और परोपकारी निधियों तक पहुँच प्रदान करता है।
तथापि, इसका सबसे अधिक लाभ उन कंपनियों को होता है जिनकी भूमि के लिए भूख बड़े पैमाने पर वनों की कटाई को प्रेरित कर रही है। जब तक वे आवश्यक कार्बन क्रेडिट प्रस्तुत कर सकते हैं तब तक उन्हें वनों की कटाई जारी रखने की अनुमति देने के अतिरिक्त, आरईडीडी+ प्रभावी रूप से वनों की हानि का दोष उनकी कार्रवाइयों के बजाय उन समुदायों के मत्थे मड़ देता है जिन पर वनों के दीर्घावधि स्वास्थ्य का सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है।
यदि पेरिस में बैठक करनेवाले जलवायु के वार्ताकार वनों की हानि को रोकने और जलवायु परिवर्तन को नियंत्रण में लाने में वास्तव में रुचि रखते हैं, तो उन्हें आरईडीडी+ को बंद कर देना चाहिए और इन समस्याओं के मूल कारणों के संबंध में कार्रवाई करनी चाहिए। वनों के लोगों और खेतिहर किसानों की जिंदगियों और कार्रवाइयों को नियंत्रित करने का प्रयास करने के बजाय, पेरिस में किेए जानेवाले प्रयास में बड़े पैमाने पर वनों की कटाई को समाप्त करने और जीवाश्म ईंधनों को भूमि में पड़े रहने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।