लंदन – "तुम्हारी उंगली पर जो हीरा है, बताओ कि वह तुम्हारा कैसे हो गया?" शेक्सपियर का सिंबेलीन पूछता है। “तुम मुझे यातना दोगे,” शरारती याकिमो जवाब देता है, “उस अनकही बात को अनकही रहने देने के लिए, जिसके कह देने पर, तुम्हें यातना मिले।” प्राकृतिक संसाधनों के वैश्विक व्यापार के कुछ भागों के पीछे भी आज यही कहानी है, चाहे वह कही गई हो या न कही गई हो, वह पीड़ा के किसी स्रोत से कम नहीं है।
प्राकृतिक संसाधनों को उन कुछ देशों में विकास में प्रमुख योगदानकर्ता होना चाहिए जिन्हें इनकी सबसे ज्यादा जरूरत है। और इसके बावजूद, दुनिया के सबसे गरीब और सबसे कमजोर देशों में वे इसका बिल्कुल उलट करते हैं। इनमें से बहुत से देशों में, प्राकृतिक संसाधनों के व्यापार से, संघर्ष और मानव अधिकारों के घोर दुरुपयोग को प्रोत्साहन मिलता है, धन मिलता है, और बढ़ावा मिलता है। हीरे, सोने, टंगस्टन, टैंटलम, और टिन जैसे संसाधनों का सशस्त्र समूहों द्वारा खनन किया जाता है, उनकी तस्करी की जाती है, और अवैध रूप से उनपर कर लगाए जाते हैं, और इनसे अत्याचारी सेनाओं और सुरक्षा सेवाओं को बजटेतर आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है।
केवल इन चार अफ्रीकी देशों पर विचार करें: सूडान, दक्षिण सूडान, मध्य अफ्रीकी गणराज्य, और कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य। कुल मिलाकर, इन संसाधन संपन्न देशों में उप सहारा अफ्रीका की जनसंख्या का केवल 13% से कुछ अधिक हिस्सा है, लेकिन संघर्ष के कारण इस क्षेत्र में आंतरिक रूप से विस्थापित व्यक्तियों का हिस्सा लगभग 55% (और पूरे विश्व में पाँच में से एक) है। लेकिन यह समस्या वैश्विक है, और कोलम्बिया, म्यांमार और अफगानिस्तान जैसे देशों के कुछ हिस्सों में इसी तरह के तरीके मौजूद हैं।
संघर्ष क्षेत्र के संसाधनों में घातक व्यापार उन आपूर्ति शृंखलाओं की मदद से किया जाता है जो यूरोपीय संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे प्रमुख उपभोक्ता बाजारों का पोषण करती हैं, जिनमें नकदी वापस विपरीत दिशा में प्रवाहित होती है। टिन, टैंटलम, टंगस्टन, और सोने जैसे प्राकृतिक संसाधन - सभी ऐसे खनिज पदार्थ हैं जिन्हें दुनिया के कुछ भागों में संघर्ष और मानव अधिकारों के दुरुपयोग से संबद्ध किया जाता है - हमारे आभूषणों, कारों, मोबाइल फोनों, गेम कंसोल, चिकित्सा उपकरणों, और रोजमर्रा के कई अन्य उत्पादों में पाए जाते हैं।
ऐसी जानकारी के लिए स्पष्ट उपभोक्ता माँग मौजूद है जिससे खरीदारों को यह सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी कि उनकी खरीदों के फलस्वरूप उन्हें घोर दुरुपयोग में नहीं फँसना पड़ेगा। लेकिन वैश्विक वाणिज्य को बुनियादी मानव अधिकारों से संयोजित करने की जिम्मेदारी सबसे पहले और सबसे अधिक उपभोक्ताओं पर नहीं आती है। संघर्ष की रोकथाम और मानव अधिकारों का संरक्षण करना मुख्य रूप से देशों की जिम्मेदारी है, और इस बात को अधिकाधिक मान्यता मिल रही है कि व्यवसायों को भी अपनी भूमिका का निर्वाह करना चाहिए।
वास्तव में, अब हम एक ऐसे महत्वपूर्ण बिंदु पर हैं जो गैर जिम्मेदाराना कॉर्पोरेट प्रथाओं को सामान्य रूप से व्यवसाय के रूप में देखे जाने को रोकने का एक वैश्विक आंदोलन बन गया है। 2010 के बाद से, संघर्ष के क्षेत्रों में काम करनेवाली कंपनियों को निपटान का एक वैश्विक मानक उपलब्ध रहा है। ओईसीडी इस बारे में मार्गदर्शन प्रदान करता है कि खनिजों को जिम्मेदारीपूर्वक किस तरह प्राप्त किया जाए। उद्योग के साथ निकट सहयोग से विकसित, इसमें ऐसी "विस्तृत सिफारिशें प्रस्तुत की गई हैं जिनसे कंपनियाँ मानव अधिकारों का सम्मान कर सकें और अपने खनिज खरीद के निर्णयों और प्रथाओं के माध्यम से संघर्ष में योगदान करने से बचें।"
संयुक्त राष्ट्र ने भी इसी तरह की आवश्यकताओं का समर्थन किया है। 2011 में, संयुक्त राष्ट्र ने व्यवसाय और मानव अधिकारों संबंधी मार्गदर्शी सिद्धांतों का एक सेट प्रकाशित किया था, जिसके अनुसार जिन कंपनियों के "प्रचालन संदर्भों से मानव अधिकारों के गंभीर प्रभावों के जोखिमों की संभावना हो, उन्हें औपचारिक रूप से यह सूचित किया जाना चाहिए कि वे उनपर किस तरह कार्रवाई करते हैं।"
और फिर भी, उद्योग के कुछ प्रगतिशील अग्रणियों को छोड़कर, मात्र कुछ कंपनियों ने ही इस स्वैच्छिक मार्गदर्शन के लिए प्रतिक्रिया व्यक्त की है। 2013 में, डच शोधकर्ताओं ने यूरोपीय शेयर बाजारों में सूचीबद्ध उन 186 कंपनियों का सर्वेक्षण किया जो संघर्ष क्षेत्र वाले खनिजों का इस्तेमाल करती हैं। 80% से अधिक ने अपनी वेब साइटों पर इसका कोई जिक्र नहीं किया कि उन्होंने संघर्ष के लिए धन देने या मानवाधिकार के दुरुपयोगों से बचने के लिए क्या किया था। इसी प्रकार, व्यापार के लिए यूरोपीय आयोग के महानिदेशक ने यह पाया कि 153 यूरोपीय संघ कंपनियों में से केवल 7% कंपनियाँ ही अपनी वार्षिक रिपोर्टों में या अपनी वेब साइटों पर संघर्ष क्षेत्र के खनिज पदार्थों के बारे में उचित जाँच-पड़ताल करने की नीति का उल्लेख करती हैं।
संयुक्त राज्य अमेरिका ने पहले से ही अगला तार्किक कदम उठाया है। प्रतिभूति और विनिमय आयोग अपेक्षा करता है कि जो कंपनियाँ अपने उत्पादों में टैंटलम, टिन, सोने या टंगस्टन का उपयोग करती हैं वे इन कच्चे मालों के उद्गम की जाँच करें, और यदि यह पाया जाता है कि उनका उद्गम किन्हीं संघर्ष-प्रभावित या उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में हुआ है तो ओईसीडी के दिशानिर्देशों के अनुसार अपनी आपूर्ति शृंखलाओं में जोखिम को कम करें। अफ्रीका के ग्रेट लेक्स क्षेत्र पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के 12 सदस्य देशों ने इसी प्रकार की उचित जाँच-पड़ताल करने की अनिवार्य अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए प्रतिबद्धता की है।
यह वैसा ही है जैसा कि होना चाहिए। जिम्मेदारीपूर्ण सोर्सिंग एक कर्तव्य है, विकल्प नहीं। और यहाँ पर, यूरोपीय संघ पिछड़ रहा है। मार्च में, यूरोपीय आयोग ने एक योजना का प्रस्ताव रखा जिसके तहत प्रकटीकरण स्वैच्छिक होना जारी रहेगा, जिसका अर्थ है कि यूरोपीय संघ में प्रवेश करनेवाले खनिजों पर अनिवार्य जाँचों की शर्त लागू नहीं होगी। इसके अलावा, प्रस्ताव कच्चे लौह अयस्क और धातुओं पर विशेष रूप से केंद्रित है, और इसमें मोबाइल फोन, वाहन, और चिकित्सा उपकरणों जैसे वे उत्पाद शामिल नहीं है जिनमें संबंधित खनिज होते हैं।
अब यूरोपीय संसद और यूरोपीय परिषद द्वारा प्रस्ताव की समीक्षा की जा रही है। यह महत्वपूर्ण है कि दोनों संस्थाएँ प्रकटीकरण और अनुपालन को अनिवार्य बनाकर और इसमें तैयार और अर्द्ध-तैयार उत्पादों को शामिल करके व्याप्ति में विस्तार करके यूरोपीय संघ की प्रतिक्रिया को मजबूत करने के लिए इस अवसर का लाभ उठाएँ। इन संसाधनों में व्यापार को बेहतर रूप से नियंत्रित करने मात्र से संघर्ष-प्रभावित क्षेत्रों में शांति नहीं आ पाएगी। लेकिन संघर्ष और मानव अधिकारों के दुरुपयोगों के लिए धन देना व्यवसाय करने की स्वीकार्य लागत नहीं है।
लंदन – "तुम्हारी उंगली पर जो हीरा है, बताओ कि वह तुम्हारा कैसे हो गया?" शेक्सपियर का सिंबेलीन पूछता है। “तुम मुझे यातना दोगे,” शरारती याकिमो जवाब देता है, “उस अनकही बात को अनकही रहने देने के लिए, जिसके कह देने पर, तुम्हें यातना मिले।” प्राकृतिक संसाधनों के वैश्विक व्यापार के कुछ भागों के पीछे भी आज यही कहानी है, चाहे वह कही गई हो या न कही गई हो, वह पीड़ा के किसी स्रोत से कम नहीं है।
प्राकृतिक संसाधनों को उन कुछ देशों में विकास में प्रमुख योगदानकर्ता होना चाहिए जिन्हें इनकी सबसे ज्यादा जरूरत है। और इसके बावजूद, दुनिया के सबसे गरीब और सबसे कमजोर देशों में वे इसका बिल्कुल उलट करते हैं। इनमें से बहुत से देशों में, प्राकृतिक संसाधनों के व्यापार से, संघर्ष और मानव अधिकारों के घोर दुरुपयोग को प्रोत्साहन मिलता है, धन मिलता है, और बढ़ावा मिलता है। हीरे, सोने, टंगस्टन, टैंटलम, और टिन जैसे संसाधनों का सशस्त्र समूहों द्वारा खनन किया जाता है, उनकी तस्करी की जाती है, और अवैध रूप से उनपर कर लगाए जाते हैं, और इनसे अत्याचारी सेनाओं और सुरक्षा सेवाओं को बजटेतर आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है।
केवल इन चार अफ्रीकी देशों पर विचार करें: सूडान, दक्षिण सूडान, मध्य अफ्रीकी गणराज्य, और कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य। कुल मिलाकर, इन संसाधन संपन्न देशों में उप सहारा अफ्रीका की जनसंख्या का केवल 13% से कुछ अधिक हिस्सा है, लेकिन संघर्ष के कारण इस क्षेत्र में आंतरिक रूप से विस्थापित व्यक्तियों का हिस्सा लगभग 55% (और पूरे विश्व में पाँच में से एक) है। लेकिन यह समस्या वैश्विक है, और कोलम्बिया, म्यांमार और अफगानिस्तान जैसे देशों के कुछ हिस्सों में इसी तरह के तरीके मौजूद हैं।
संघर्ष क्षेत्र के संसाधनों में घातक व्यापार उन आपूर्ति शृंखलाओं की मदद से किया जाता है जो यूरोपीय संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे प्रमुख उपभोक्ता बाजारों का पोषण करती हैं, जिनमें नकदी वापस विपरीत दिशा में प्रवाहित होती है। टिन, टैंटलम, टंगस्टन, और सोने जैसे प्राकृतिक संसाधन - सभी ऐसे खनिज पदार्थ हैं जिन्हें दुनिया के कुछ भागों में संघर्ष और मानव अधिकारों के दुरुपयोग से संबद्ध किया जाता है - हमारे आभूषणों, कारों, मोबाइल फोनों, गेम कंसोल, चिकित्सा उपकरणों, और रोजमर्रा के कई अन्य उत्पादों में पाए जाते हैं।
ऐसी जानकारी के लिए स्पष्ट उपभोक्ता माँग मौजूद है जिससे खरीदारों को यह सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी कि उनकी खरीदों के फलस्वरूप उन्हें घोर दुरुपयोग में नहीं फँसना पड़ेगा। लेकिन वैश्विक वाणिज्य को बुनियादी मानव अधिकारों से संयोजित करने की जिम्मेदारी सबसे पहले और सबसे अधिक उपभोक्ताओं पर नहीं आती है। संघर्ष की रोकथाम और मानव अधिकारों का संरक्षण करना मुख्य रूप से देशों की जिम्मेदारी है, और इस बात को अधिकाधिक मान्यता मिल रही है कि व्यवसायों को भी अपनी भूमिका का निर्वाह करना चाहिए।
वास्तव में, अब हम एक ऐसे महत्वपूर्ण बिंदु पर हैं जो गैर जिम्मेदाराना कॉर्पोरेट प्रथाओं को सामान्य रूप से व्यवसाय के रूप में देखे जाने को रोकने का एक वैश्विक आंदोलन बन गया है। 2010 के बाद से, संघर्ष के क्षेत्रों में काम करनेवाली कंपनियों को निपटान का एक वैश्विक मानक उपलब्ध रहा है। ओईसीडी इस बारे में मार्गदर्शन प्रदान करता है कि खनिजों को जिम्मेदारीपूर्वक किस तरह प्राप्त किया जाए। उद्योग के साथ निकट सहयोग से विकसित, इसमें ऐसी "विस्तृत सिफारिशें प्रस्तुत की गई हैं जिनसे कंपनियाँ मानव अधिकारों का सम्मान कर सकें और अपने खनिज खरीद के निर्णयों और प्रथाओं के माध्यम से संघर्ष में योगदान करने से बचें।"
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संयुक्त राष्ट्र ने भी इसी तरह की आवश्यकताओं का समर्थन किया है। 2011 में, संयुक्त राष्ट्र ने व्यवसाय और मानव अधिकारों संबंधी मार्गदर्शी सिद्धांतों का एक सेट प्रकाशित किया था, जिसके अनुसार जिन कंपनियों के "प्रचालन संदर्भों से मानव अधिकारों के गंभीर प्रभावों के जोखिमों की संभावना हो, उन्हें औपचारिक रूप से यह सूचित किया जाना चाहिए कि वे उनपर किस तरह कार्रवाई करते हैं।"
और फिर भी, उद्योग के कुछ प्रगतिशील अग्रणियों को छोड़कर, मात्र कुछ कंपनियों ने ही इस स्वैच्छिक मार्गदर्शन के लिए प्रतिक्रिया व्यक्त की है। 2013 में, डच शोधकर्ताओं ने यूरोपीय शेयर बाजारों में सूचीबद्ध उन 186 कंपनियों का सर्वेक्षण किया जो संघर्ष क्षेत्र वाले खनिजों का इस्तेमाल करती हैं। 80% से अधिक ने अपनी वेब साइटों पर इसका कोई जिक्र नहीं किया कि उन्होंने संघर्ष के लिए धन देने या मानवाधिकार के दुरुपयोगों से बचने के लिए क्या किया था। इसी प्रकार, व्यापार के लिए यूरोपीय आयोग के महानिदेशक ने यह पाया कि 153 यूरोपीय संघ कंपनियों में से केवल 7% कंपनियाँ ही अपनी वार्षिक रिपोर्टों में या अपनी वेब साइटों पर संघर्ष क्षेत्र के खनिज पदार्थों के बारे में उचित जाँच-पड़ताल करने की नीति का उल्लेख करती हैं।
संयुक्त राज्य अमेरिका ने पहले से ही अगला तार्किक कदम उठाया है। प्रतिभूति और विनिमय आयोग अपेक्षा करता है कि जो कंपनियाँ अपने उत्पादों में टैंटलम, टिन, सोने या टंगस्टन का उपयोग करती हैं वे इन कच्चे मालों के उद्गम की जाँच करें, और यदि यह पाया जाता है कि उनका उद्गम किन्हीं संघर्ष-प्रभावित या उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में हुआ है तो ओईसीडी के दिशानिर्देशों के अनुसार अपनी आपूर्ति शृंखलाओं में जोखिम को कम करें। अफ्रीका के ग्रेट लेक्स क्षेत्र पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के 12 सदस्य देशों ने इसी प्रकार की उचित जाँच-पड़ताल करने की अनिवार्य अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए प्रतिबद्धता की है।
यह वैसा ही है जैसा कि होना चाहिए। जिम्मेदारीपूर्ण सोर्सिंग एक कर्तव्य है, विकल्प नहीं। और यहाँ पर, यूरोपीय संघ पिछड़ रहा है। मार्च में, यूरोपीय आयोग ने एक योजना का प्रस्ताव रखा जिसके तहत प्रकटीकरण स्वैच्छिक होना जारी रहेगा, जिसका अर्थ है कि यूरोपीय संघ में प्रवेश करनेवाले खनिजों पर अनिवार्य जाँचों की शर्त लागू नहीं होगी। इसके अलावा, प्रस्ताव कच्चे लौह अयस्क और धातुओं पर विशेष रूप से केंद्रित है, और इसमें मोबाइल फोन, वाहन, और चिकित्सा उपकरणों जैसे वे उत्पाद शामिल नहीं है जिनमें संबंधित खनिज होते हैं।
अब यूरोपीय संसद और यूरोपीय परिषद द्वारा प्रस्ताव की समीक्षा की जा रही है। यह महत्वपूर्ण है कि दोनों संस्थाएँ प्रकटीकरण और अनुपालन को अनिवार्य बनाकर और इसमें तैयार और अर्द्ध-तैयार उत्पादों को शामिल करके व्याप्ति में विस्तार करके यूरोपीय संघ की प्रतिक्रिया को मजबूत करने के लिए इस अवसर का लाभ उठाएँ। इन संसाधनों में व्यापार को बेहतर रूप से नियंत्रित करने मात्र से संघर्ष-प्रभावित क्षेत्रों में शांति नहीं आ पाएगी। लेकिन संघर्ष और मानव अधिकारों के दुरुपयोगों के लिए धन देना व्यवसाय करने की स्वीकार्य लागत नहीं है।