रोम – पोप फ़्रांसिस दुनिया से ग्लोबल वार्मिंग के खिलाफ़ कार्रवाई करने के लिए आह्वान कर रहे हैं, और संयुक्त राज्य अमेरिका में कई अनुदार राजनेताओं ने उनके विरुद्ध लड़ाई छेड़ दी है। उनका कहना है कि पोप को नैतिकता के क्षेत्र तक ही सीमित रहना चाहिए, और उन्हें विज्ञान के क्षेत्र में दख़ल नहीं देना चाहिए। लेकिन, जैसे-जैसे इस वर्ष जलवायु वाद-विवाद आगे बढ़ेगा, अधिकांश मानवता फ्रांसिस के संदेश पर विचार करने के लिए मजबूर हो जाएगी: हमें अपनी धरती के जोखिम को कम करने के लिए विज्ञान और नैतिकता दोनों की ज़रूरत है।
ध्यान देने योग्य पहली बात यह है कि अमेरिकियों का भारी बहुमत फ्रांसिस की जो बड़े कोयला उद्योगपतियों और बड़े तेल उद्योगपतियों के हितों की रक्षा करती है, अमेरिकी लोगों की नहीं। जीवाश्म-ईंधन उद्योग मिच मैककॉनेल और जेम्स इनहोफ जैसे कांग्रेस विधायकों की लॉबी तैयार करने और उनके पक्ष में प्रचार करने पर भारी-भरकम राशि ख़र्च करता है। दुनिया के जलवायु संकट में अमेरिका के लोकतांत्रिक संकट के कारण बढ़ोतरी हुई है।
जनवरी 2015 में किए गए अमेरिकियों के सर्वेक्षण में, बहुत अधिक उत्तरदाताओं (78%) ने कहा कि "अगर ग्लोबल वार्मिंग को कम करने के लिए कुछ नहीं किया जाता है," तो अमेरिका के लिए भविष्य के परिणाम "कुछ हद तक गंभीर" या "बहुत गंभीर" हो सकते हैं। लगभग उसी अनुपात में (74%) उत्तरदाताओं ने कहा कि अगर ग्लोबल वार्मिंग को कम करने के लिए कुछ नहीं किया जाता है, तो भावी पीढ़ियों को "सामान्य मात्रा में", "काफी" या "बहुत अधिक" नुकसान पहुँचेगा। शायद सबसे प्रभावशाली रूप से, 66% ने कहा कि इस बात की "अधिक संभावना" होगी कि वे उस उम्मीदवार का समर्थन करेंगे जो यह कहेगा कि जलवायु परिवर्तन हो रहा है और जो अक्षय ऊर्जा में बदलाव के लिए कहेगा, जबकि 12% ने कहा कि इस तरह के उम्मीदवार का समर्थन करने की "कम संभावना" होगी।
मार्च 2015 में, एक अन्य सर्वेक्षण में संयुक्त राज्य अमेरिका के ईसाइयों की प्रवृत्तियों की जाँच की गई जिनमें 71% अमेरिकी शामिल हैं। उत्तर तीन समूहों के लिए सूचित किए गए: कैथोलिक, गैर-इंजील प्रोटेस्टेंट, और ईसाई मत को माननेवाले। इन समूहों के लोगों की प्रवृत्तियाँ आम तौर पर अधिकतर अमेरिकियों से इस रूप में मिलती-जुलती थीं: 69% कैथोलिक और 62% मुख्य धारा के प्रोटेस्टेंटों ने यह उत्तर दिया कि जलवायु परिवर्तन हो रहा है, जबकि ईसाई मत को माननेवालों के अल्प बहुमत (51%) ने इससे सहमति व्यक्त की। प्रत्येक समूह में बहुमत ने यह सहमति भी व्यक्त की कि ग्लोबल वार्मिंग से प्राकृतिक वातावरण और भविष्य की पीढ़ियों को नुकसान होगा, और यह कि ग्लोबल वार्मिंग को कम करने से पर्यावरण और भावी पीढ़ियों को मदद मिलेगी।
तो फिर अमेरिका के कौन-से अल्पसंख्यक जलवायु संबंधी कार्रवाई का विरोध करते हैं? ऐसे तीन मुख्य समूह हैं। पहला समूह मुक्त बाजार परंपरावादियों का है, जिन्हें जलवायु परिवर्तन की तुलना में शायद सरकारी हस्तक्षेप से अधिक डर लगता है। कुछ लोगों ने अपनी विचारधारा का पालन इस हद तक किया है कि उन्होंने सुस्थापित विज्ञान का भी खंडन किया है: क्योंकि सरकार का हस्तक्षेप ख़राब होता है, वे खुद को इस बात से बहला लेते हैं कि विज्ञान पूरी तरह से सच नहीं हो सकता है।
दूसरा समूह धार्मिक कट्टरपंथियों का है। वे जलवायु परिवर्तन से इसलिए इनकार करते हैं क्योंकि वे भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान, और भूविज्ञान के भारी सबूतों के बावजूद, पृथ्वी विज्ञान को पूरी तरह से अस्वीकार करते हैं, और नई बनाई जाने वाली दुनिया में विश्वास करते हैं।
Secure your copy of PS Quarterly: The Year Ahead 2025
Our annual flagship magazine, PS Quarterly: The Year Ahead 2025, has arrived. To gain digital access to all of the magazine’s content, and receive your print copy, subscribe to PS Digital Plus now.
Subscribe Now
लेकिन यह तीसरा समूह है जो राजनीतिक रूप से सबसे अधिक शक्तिशाली समूह है: तेल और कोयले के हितों की रक्षा करनेवाला समूह, जिसने 2014 के अभियान के लिए करोड़ों डॉलर का योगदान किया था। अमेरिका के अभियान के सबसे बड़े वित्तपोषक, डेविड और चार्ल्स कोच ऐसे तेलपुरुष हैं, जो शेष मानवता को इससे होनेवाले नुकसान के बावजूद, अपनी विशाल धन-संपदा को दिन दुगुना रात चौगुना करने में लगे हुए हैं। शायद वे सचमुच ही जलवायु को न माननेवाले भी हैं। पर सच बात अपटन सिंक्लेयर की इस मशहूर चुटकी में झलकती है, "जब किसी व्यक्ति का वेतन किसी बात को न समझने पर निर्भर करता हो, तो उसे उस बात को समझाना मुश्किल है।"
फ्रांसिस के दक्षिणपंथी आलोचक शायद इन तीनों ही समूहों से संबंधित हैं, लेकिन वे कम-से-कम आंशिक रूप से तीसरे समूह द्वारा वित्तपोषित हैं। विज्ञानों और सामाजिक विज्ञानों की बिशप अकादमियाँ और दुनिया के कई शीर्ष भू-वैज्ञानिक और समाज विज्ञानी जब अप्रैल में वेटिकन में मिले थे, तो कोच बंधुओं द्वारा अनेक वर्षों से समर्थन प्रदान की जा रही मुक्तिवादी हार्टलैंड इंस्टीट्यूट ने सेंट पीटर स्क्वेयर के बाहर एक असफल विरोध-प्रदर्शन किया था। वेटिकन की बैठक में वैज्ञानिकों ने इस बात पर बल देने का विशेष ध्यान रखा कि जलवायु विज्ञान और नीति में भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान, भूविज्ञान, खगोल विज्ञान, इंजीनियरिंग, अर्थशास्त्र, और समाजशास्त्र के मौलिक सिद्धांत प्रतिबिंबित होते हैं, जिनके मुख्य अंशों को 100 से अधिक वर्षों से भली-भाँति समझा जाता रहा है।
फिर भी पोप के दक्षिणपंथी आलोचकों को अपने धर्मशास्त्र के बारे में जितनी गलतफहमी है उतनी ही उन्हें अपने विज्ञान के बारे में भी है। जब यह कहा जाता है कि पोप को नैतिकता तक सीमित रहना चाहिए, तब रोमन कैथोलिक मत की बुनियादी गलतफहमी को नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है। चर्च विश्वास और कारण में समझौते का समर्थन करता है। कम-से-कम थामस एक्विनास की सुम्मा थियोलॉजिका (1265-1274) के प्रकाशन के बाद से, प्राकृतिक कानून और स्वर्णिम नियम को चर्च के उपदेशों के मूल स्तंभ के रूप में देखा गया है।
अधिकांश लोगों को पता है कि चर्च ने गैलीलियो की कोपर्निकस सूर्य केन्द्रीयता के समर्थन का विरोध किया था, जिसके लिए पोप जॉन पॉल द्वितीय ने 1992 में माफी मांगी थी। लेकिन बहुत से लोग दुनिया के अग्रणी कैथोलिक पादरियों द्वारा जीव विज्ञान, रसायन विज्ञान और भौतिकी में किए गए कई महत्वपूर्ण योगदानों सहित, आधुनिक विज्ञान के लिए चर्च द्वारा किए गए समर्थन से अनजान हैं। वास्तव में, विज्ञान की बिशप अकादमी की स्थापना 400 से अधिक साल पहले लिंक्सेस अकादमी (Accademia dei Lincei) से हुई थी, जिसने 1611 में गैलीलियो को शामिल किया था।
फ्रांसिस का उद्देश्य, निश्चित रूप से, आधुनिक विज्ञान, प्राकृतिक और सामाजिक दोनों, का विश्वास और नैतिकता के साथ मेल करना है। कठोर मेहनत से प्राप्त किए गए हमारे वैज्ञानिक ज्ञान का उपयोग, मानव कल्याण को बढ़ावा देने, कमजोर और गरीब लोगों की रक्षा करने, पृथ्वी की नाजुक पारिस्थितिकी प्रणालियों का संरक्षण करने, और भावी पीढ़ियों में विश्वास रखने के लिए किया जाना चाहिए। विज्ञान मानवता की वजह से होनेवाले पर्यावरण के खतरों को प्रकट कर सकता है; इंजीनियरिंग धरती की रक्षा करने के लिए उपकरण बना सकती है; और आस्था और नैतिक तर्क व्यावहारिक ज्ञान प्रदान कर सकते हैं (जैसा कि शायद अरस्तू और एक्विनास कहते) ताकि सर्वहित के लिए नैतिकतापूर्व चुनाव किया जा सके।
अप्रैल में हुई वेटिकन सभा में न केवल दुनिया के अग्रणी जलवायु वैज्ञानिक और नोबेल पुरस्कार विजेता शामिल थे, बल्कि प्रोटेस्टेंट, हिंदू, यहूदी, बौद्ध, और मुस्लिम धर्मों के वरिष्ठ प्रतिनिधि भी शामिल थे। फ्रांसिस की तरह, विश्व के सभी प्रमुख धर्मों के धार्मिक नेता हमें मानवता के प्रति और पृथ्वी के भविष्य के प्रति हमारी नैतिक जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए धर्म और जलवायु विज्ञान से ज्ञान प्राप्त करने के लिए आग्रह कर रहे हैं। हमें उनकी बात पर ध्यान देना चाहिए।
To have unlimited access to our content including in-depth commentaries, book reviews, exclusive interviews, PS OnPoint and PS The Big Picture, please subscribe
Though the United States has long led the world in advancing basic science and technology, it is hard to see how this can continue under President Donald Trump and the country’s ascendant oligarchy. America’s rejection of Enlightenment values will have dire consequences.
predicts that Donald Trump’s second administration will be defined by its rejection of Enlightenment values.
Will the China hawks in Donald Trump’s administration railroad him into a confrontation that transcends tariffs and embraces financial sanctions of the type the US and the European Union imposed on Russia? If they do, China's leaders will have to decide whether to decouple from the dollar-based international monetary system.
thinks the real choice facing Chinese leaders may be whether to challenge the dollar's hegemony head-on.
रोम – पोप फ़्रांसिस दुनिया से ग्लोबल वार्मिंग के खिलाफ़ कार्रवाई करने के लिए आह्वान कर रहे हैं, और संयुक्त राज्य अमेरिका में कई अनुदार राजनेताओं ने उनके विरुद्ध लड़ाई छेड़ दी है। उनका कहना है कि पोप को नैतिकता के क्षेत्र तक ही सीमित रहना चाहिए, और उन्हें विज्ञान के क्षेत्र में दख़ल नहीं देना चाहिए। लेकिन, जैसे-जैसे इस वर्ष जलवायु वाद-विवाद आगे बढ़ेगा, अधिकांश मानवता फ्रांसिस के संदेश पर विचार करने के लिए मजबूर हो जाएगी: हमें अपनी धरती के जोखिम को कम करने के लिए विज्ञान और नैतिकता दोनों की ज़रूरत है।
ध्यान देने योग्य पहली बात यह है कि अमेरिकियों का भारी बहुमत फ्रांसिस की जो बड़े कोयला उद्योगपतियों और बड़े तेल उद्योगपतियों के हितों की रक्षा करती है, अमेरिकी लोगों की नहीं। जीवाश्म-ईंधन उद्योग मिच मैककॉनेल और जेम्स इनहोफ जैसे कांग्रेस विधायकों की लॉबी तैयार करने और उनके पक्ष में प्रचार करने पर भारी-भरकम राशि ख़र्च करता है। दुनिया के जलवायु संकट में अमेरिका के लोकतांत्रिक संकट के कारण बढ़ोतरी हुई है।
जनवरी 2015 में किए गए अमेरिकियों के सर्वेक्षण में, बहुत अधिक उत्तरदाताओं (78%) ने कहा कि "अगर ग्लोबल वार्मिंग को कम करने के लिए कुछ नहीं किया जाता है," तो अमेरिका के लिए भविष्य के परिणाम "कुछ हद तक गंभीर" या "बहुत गंभीर" हो सकते हैं। लगभग उसी अनुपात में (74%) उत्तरदाताओं ने कहा कि अगर ग्लोबल वार्मिंग को कम करने के लिए कुछ नहीं किया जाता है, तो भावी पीढ़ियों को "सामान्य मात्रा में", "काफी" या "बहुत अधिक" नुकसान पहुँचेगा। शायद सबसे प्रभावशाली रूप से, 66% ने कहा कि इस बात की "अधिक संभावना" होगी कि वे उस उम्मीदवार का समर्थन करेंगे जो यह कहेगा कि जलवायु परिवर्तन हो रहा है और जो अक्षय ऊर्जा में बदलाव के लिए कहेगा, जबकि 12% ने कहा कि इस तरह के उम्मीदवार का समर्थन करने की "कम संभावना" होगी।
मार्च 2015 में, एक अन्य सर्वेक्षण में संयुक्त राज्य अमेरिका के ईसाइयों की प्रवृत्तियों की जाँच की गई जिनमें 71% अमेरिकी शामिल हैं। उत्तर तीन समूहों के लिए सूचित किए गए: कैथोलिक, गैर-इंजील प्रोटेस्टेंट, और ईसाई मत को माननेवाले। इन समूहों के लोगों की प्रवृत्तियाँ आम तौर पर अधिकतर अमेरिकियों से इस रूप में मिलती-जुलती थीं: 69% कैथोलिक और 62% मुख्य धारा के प्रोटेस्टेंटों ने यह उत्तर दिया कि जलवायु परिवर्तन हो रहा है, जबकि ईसाई मत को माननेवालों के अल्प बहुमत (51%) ने इससे सहमति व्यक्त की। प्रत्येक समूह में बहुमत ने यह सहमति भी व्यक्त की कि ग्लोबल वार्मिंग से प्राकृतिक वातावरण और भविष्य की पीढ़ियों को नुकसान होगा, और यह कि ग्लोबल वार्मिंग को कम करने से पर्यावरण और भावी पीढ़ियों को मदद मिलेगी।
तो फिर अमेरिका के कौन-से अल्पसंख्यक जलवायु संबंधी कार्रवाई का विरोध करते हैं? ऐसे तीन मुख्य समूह हैं। पहला समूह मुक्त बाजार परंपरावादियों का है, जिन्हें जलवायु परिवर्तन की तुलना में शायद सरकारी हस्तक्षेप से अधिक डर लगता है। कुछ लोगों ने अपनी विचारधारा का पालन इस हद तक किया है कि उन्होंने सुस्थापित विज्ञान का भी खंडन किया है: क्योंकि सरकार का हस्तक्षेप ख़राब होता है, वे खुद को इस बात से बहला लेते हैं कि विज्ञान पूरी तरह से सच नहीं हो सकता है।
दूसरा समूह धार्मिक कट्टरपंथियों का है। वे जलवायु परिवर्तन से इसलिए इनकार करते हैं क्योंकि वे भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान, और भूविज्ञान के भारी सबूतों के बावजूद, पृथ्वी विज्ञान को पूरी तरह से अस्वीकार करते हैं, और नई बनाई जाने वाली दुनिया में विश्वास करते हैं।
Secure your copy of PS Quarterly: The Year Ahead 2025
Our annual flagship magazine, PS Quarterly: The Year Ahead 2025, has arrived. To gain digital access to all of the magazine’s content, and receive your print copy, subscribe to PS Digital Plus now.
Subscribe Now
लेकिन यह तीसरा समूह है जो राजनीतिक रूप से सबसे अधिक शक्तिशाली समूह है: तेल और कोयले के हितों की रक्षा करनेवाला समूह, जिसने 2014 के अभियान के लिए करोड़ों डॉलर का योगदान किया था। अमेरिका के अभियान के सबसे बड़े वित्तपोषक, डेविड और चार्ल्स कोच ऐसे तेलपुरुष हैं, जो शेष मानवता को इससे होनेवाले नुकसान के बावजूद, अपनी विशाल धन-संपदा को दिन दुगुना रात चौगुना करने में लगे हुए हैं। शायद वे सचमुच ही जलवायु को न माननेवाले भी हैं। पर सच बात अपटन सिंक्लेयर की इस मशहूर चुटकी में झलकती है, "जब किसी व्यक्ति का वेतन किसी बात को न समझने पर निर्भर करता हो, तो उसे उस बात को समझाना मुश्किल है।"
फ्रांसिस के दक्षिणपंथी आलोचक शायद इन तीनों ही समूहों से संबंधित हैं, लेकिन वे कम-से-कम आंशिक रूप से तीसरे समूह द्वारा वित्तपोषित हैं। विज्ञानों और सामाजिक विज्ञानों की बिशप अकादमियाँ और दुनिया के कई शीर्ष भू-वैज्ञानिक और समाज विज्ञानी जब अप्रैल में वेटिकन में मिले थे, तो कोच बंधुओं द्वारा अनेक वर्षों से समर्थन प्रदान की जा रही मुक्तिवादी हार्टलैंड इंस्टीट्यूट ने सेंट पीटर स्क्वेयर के बाहर एक असफल विरोध-प्रदर्शन किया था। वेटिकन की बैठक में वैज्ञानिकों ने इस बात पर बल देने का विशेष ध्यान रखा कि जलवायु विज्ञान और नीति में भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान, भूविज्ञान, खगोल विज्ञान, इंजीनियरिंग, अर्थशास्त्र, और समाजशास्त्र के मौलिक सिद्धांत प्रतिबिंबित होते हैं, जिनके मुख्य अंशों को 100 से अधिक वर्षों से भली-भाँति समझा जाता रहा है।
फिर भी पोप के दक्षिणपंथी आलोचकों को अपने धर्मशास्त्र के बारे में जितनी गलतफहमी है उतनी ही उन्हें अपने विज्ञान के बारे में भी है। जब यह कहा जाता है कि पोप को नैतिकता तक सीमित रहना चाहिए, तब रोमन कैथोलिक मत की बुनियादी गलतफहमी को नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है। चर्च विश्वास और कारण में समझौते का समर्थन करता है। कम-से-कम थामस एक्विनास की सुम्मा थियोलॉजिका (1265-1274) के प्रकाशन के बाद से, प्राकृतिक कानून और स्वर्णिम नियम को चर्च के उपदेशों के मूल स्तंभ के रूप में देखा गया है।
अधिकांश लोगों को पता है कि चर्च ने गैलीलियो की कोपर्निकस सूर्य केन्द्रीयता के समर्थन का विरोध किया था, जिसके लिए पोप जॉन पॉल द्वितीय ने 1992 में माफी मांगी थी। लेकिन बहुत से लोग दुनिया के अग्रणी कैथोलिक पादरियों द्वारा जीव विज्ञान, रसायन विज्ञान और भौतिकी में किए गए कई महत्वपूर्ण योगदानों सहित, आधुनिक विज्ञान के लिए चर्च द्वारा किए गए समर्थन से अनजान हैं। वास्तव में, विज्ञान की बिशप अकादमी की स्थापना 400 से अधिक साल पहले लिंक्सेस अकादमी (Accademia dei Lincei) से हुई थी, जिसने 1611 में गैलीलियो को शामिल किया था।
फ्रांसिस का उद्देश्य, निश्चित रूप से, आधुनिक विज्ञान, प्राकृतिक और सामाजिक दोनों, का विश्वास और नैतिकता के साथ मेल करना है। कठोर मेहनत से प्राप्त किए गए हमारे वैज्ञानिक ज्ञान का उपयोग, मानव कल्याण को बढ़ावा देने, कमजोर और गरीब लोगों की रक्षा करने, पृथ्वी की नाजुक पारिस्थितिकी प्रणालियों का संरक्षण करने, और भावी पीढ़ियों में विश्वास रखने के लिए किया जाना चाहिए। विज्ञान मानवता की वजह से होनेवाले पर्यावरण के खतरों को प्रकट कर सकता है; इंजीनियरिंग धरती की रक्षा करने के लिए उपकरण बना सकती है; और आस्था और नैतिक तर्क व्यावहारिक ज्ञान प्रदान कर सकते हैं (जैसा कि शायद अरस्तू और एक्विनास कहते) ताकि सर्वहित के लिए नैतिकतापूर्व चुनाव किया जा सके।
अप्रैल में हुई वेटिकन सभा में न केवल दुनिया के अग्रणी जलवायु वैज्ञानिक और नोबेल पुरस्कार विजेता शामिल थे, बल्कि प्रोटेस्टेंट, हिंदू, यहूदी, बौद्ध, और मुस्लिम धर्मों के वरिष्ठ प्रतिनिधि भी शामिल थे। फ्रांसिस की तरह, विश्व के सभी प्रमुख धर्मों के धार्मिक नेता हमें मानवता के प्रति और पृथ्वी के भविष्य के प्रति हमारी नैतिक जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए धर्म और जलवायु विज्ञान से ज्ञान प्राप्त करने के लिए आग्रह कर रहे हैं। हमें उनकी बात पर ध्यान देना चाहिए।