ओटावा – दिसंबर में पेरिस में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में हॉलीवुड की किसी सुपरहिट फिल्म की तरह सभी नाटकीय तत्व मौजूद होंगे। इसमें ढेरों कलाकार होंगे: सभी राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री मुख्य मंच पर विराजमान होंगे, और उनका साथ देने के लिए सहयोगी कलाकारों के रूप में हजारों प्रदर्शनकारियों, दंगा पुलिस और मीडिया की बसों का भारी हुजूम होगा। इसकी पटकथा भले ही अभी तक गुप्त हो, लेकिन इसका कथानक पहले से ही जगज़ाहिर हो चुका है: 2009 में कोपेनहेगन में विफल रही वार्ताओं के बिल्कुल विपरीत, इस बार इस धरती को अवश्य सफलता मिलेगी।
यह कथानक आकर्षक तो है, लेकिन इसका निर्वाह करना मुश्किल है। दुनिया को यह बताया जाएगा कि सद्भावना और कठोर सौदेबाज़ी रंग लाई है। सरकारें ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जनों में स्वैच्छिक कटौतियाँ करने के लिए सहमत हो गई हैं जिससे धरती को 2 डिग्री सेल्सियस से अधिक गर्म होने से रोका जा सकेगा। फिर विलक्षण यांत्रिक रूप से प्रकट दैवी शक्ति से यह रहस्योद्धाटन होगा कि दुनिया की जीवाश्म ईंधन की सबसे बड़ी कंपनियाँ अर्थात तथाकथित महाशक्तियाँ इस पर सहमत हो गई हैं कि वे कार्बन को स्रोत पर पकड़कर, इसे वायुमंडल से बाहर निकालकर, और इसका भूमिगत भंडारण करके शुद्ध उत्सर्जनों को 2100 तक शून्य पर ले आएँगी। इस प्रकार धरती को बचा लिया जाएगा, और अर्थव्यवस्था फलने-फूलने के लिए मुक्त होगी। संगीत आरंभ होने के साथ पटाक्षेप हो जाएगा।
समस्या यह है कि यह कहानी वास्तविक नहीं, बल्कि काल्पनिक है। इसके लिए अपेक्षित प्रौद्योगिकी का आविष्कार अभी किया जाना बाकी है, और शुद्ध उत्सर्जनों को शून्य तक लाना कदापि संभव नहीं है। और, हॉलीवुड की फ़िल्म की तरह, पेरिस सम्मेलन का संदेश उन लोगों के द्वारा अत्यधिक प्रभावित किया हुआ होगा जिनके पास सबसे अधिक धन है।
इसका हिसाब-किताब लगाना मुश्किल नहीं है। पूरी तरह से जीवाश्म ईंधनों के उपयोग के लिए निर्मित विश्व की ऊर्जा के बुनियादी ढाँचे का मूल्य $55 ट्रिलियन है। जीवाश्म ईंधन के भंडारों – जिनमें से अधिकतर का स्वामित्व महाशक्तियों के पास है – का मौद्रिक मूल्य लगभग $28 ट्रिलियन है।
जीवाश्म ईंधन के उद्योग का प्रभाव इससे स्पष्ट है कि दुनिया भर में सरकारों द्वारा इस साल इस पर सब्सिडी देने के लिए लगभग $5.3 ट्रिलियन खर्च किए जाने की संभावना है, जिसमें इसके स्वास्थ्य और पर्यावरण संबंधी प्रतिकूल प्रभावों को दूर करने के लिए किए जानेवाले आवश्यक भारी परिव्यय शामिल हैं। दूसरे शब्दों में, पेरिस में सरकारों की बैठक में जलवायु परिवर्तन के कारणों के लिए सब्सिडी देने पर अधिक खर्च किया जाएगा, बजाय उस खर्च के जो वैश्विक स्वास्थ्य देखभाल पर या इस रूप में जलवायु परिवर्तन के शमन और अनुकूलन पर किया जाता है।
लेकिन यह पेरिस में बयान की जानेवाली कहानी का हिस्सा नहीं होगा। वहाँ, दुनिया की जनता को "भू-तकनीकी इंजीनियरिंग" के दो अप्रमाणित रूपों पर आधारित कथा को प्रस्तुत किया जाएगा जिसके समर्थक धरती की प्रणाली में हेरफेर करना चाहते हैं। जिस प्रयास पर सबसे अधिक मात्रा में ध्यान दिया जाएगा वह कार्बन को पकड़ने और भंडारण से प्राप्त जैव-ऊर्जा (BECCS) है। मई में, संयुक्त राज्य अमेरिका के ऊर्जा विभाग ने इस प्रौद्योगिकी पर चर्चा करने के लिए एक निजी बैठक आयोजित की, जो महाशक्तियों द्वारा अपनी परिसंपत्तियों की रक्षा करने के लिए इस्तेमाल किया जानेवाला अपनी आबरू बचाने का साधन होगा।
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हालाँकि, BECCS को लागू करने के लिए दुनिया को भारत के आकार से 1.5 गुना क्षेत्र बनाए रखने की आवश्यकता होगी जो ऐसे खेतों या जंगलों से भरा होगा जिनमें कार्बन डाइऑक्साइड की विशाल मात्राओं को अवशोषित करने की क्षमता होगी, साथ ही दुनिया की उस आबादी के लिए पर्याप्त भोजन उपलब्ध कराने की भी आवश्यकता होगी जिसके 2050 तक नौ बिलियन से अधिक हो जाने की उम्मीद है। प्रौद्योगिकी के पैरोकार यह वादा करते हैं कि तब तक जैविक विलगीकरण में ऐसे कार्यक्रम जुड़ जाएँगे जो उत्सर्जनों के निकलने पर उन्हें पकड़ लेंगे या उन्हें हवा से बाहर खींच लेंगे ताकि उन्हें गहरे भूमिगत शाफ्टों में डाला जा सके - जिससे वे नज़रों से दूर और मन से दूर हो जाएँगे।
जीवाश्म ईंधन के उत्पादक कार्बन पकड़ने को इसलिए बढ़ावा देते हैं ताकि वे अपनी खानों को खुला रख सकें और पंपों को चालू रख सकें। यह धरती के लिए दुर्भाग्य की बात है कि बहुत से वैज्ञानिकों को यह तकनीकी रूप से असंभव और आर्थिक रूप से विनाशकारी लगता है - विशेष रूप से यदि ऐसी प्रौद्योगिकी को तब लागू किया जाता है जब अराजक जलवायु परिवर्तन से बचने की आवश्यकता हो।
तापमानों को नियंत्रण से बाहर तक बढ़ने से रोकने के लिए सौर विकिरण प्रबंधन नामक एक दूसरे भू-तकनीकी इंजीनियरिंग उपाय की आवश्यकता होगी। इसके मूल में विचार सूरज की रोशनी को रोकने के लिए वायुमंडल में 30 किलोमीटर की दूरी तक सल्फेट को पंप करने के लिए पाइपों का उपयोग करने जैसी तकनीकों का उपयोग करके ज्वालामुखी विस्फोट के प्राकृतिक रूप से ठंडा होने की प्रक्रिया की नकल करना है।
ब्रिटेन की रॉयल सोसाइटी का मानना है कि इस तरह की प्रौद्योगिकी का उपयोग करना अपरिहार्य हो सकता है, और यह अन्य देशों में अपने समकक्षों के साथ काम कर रही है ताकि यह पता लगाया जा सके कि इसके उपयोग को किन तरीकों से नियंत्रित किया जाना चाहिए। इससे पहले इस वर्ष, अमेरिका की विज्ञान की राष्ट्रीय अकादमियों ने इस तकनीक को अनमना समर्थन दिया, और चीन की सरकार ने मौसम संशोधन में भारी निवेश करने की घोषणा की जिसमें सौर विकिरण प्रबंधन शामिल हो सकता है। रूस इस प्रौद्योगिकी के विकास के लिए पहले से ही काम कर रहा है।
कार्बन को पकड़ने के विपरीत, सूर्य की रोशनी को रोकने में वास्तव में वैश्विक तापमानों को कम करने की क्षमता है। सिद्धांत रूप में, यह प्रौद्योगिकी सरल, सस्ती, और किसी एक देश या सहयोगियों के एक छोटे समूह द्वारा लागू किए जाने में सक्षम है; इसके लिए संयुक्त राष्ट्र की सहमति की आवश्यकता नहीं है।
लेकिन सौर विकिरण प्रबंधन वातावरण से ग्रीन हाउस गैसों को दूर नहीं करता है। यह केवल उनके प्रभावों को छिपा देता है। पाइपों के बंद हो जाने पर, धरती का तापमान बढ़ने लग जाएगा। प्रौद्योगिकी से इसे कुछ समय के लिए रोका जा सकता है, लेकिन इससे धरती के थर्मोस्टेट का नियंत्रण उन लोगों के हाथ में आ जाता है जिनके हाथ में पाइप हों। यहाँ तक कि प्रौद्योगिकी के पैरोकार भी यह मानते हैं कि उनके कंप्यूटर मॉडलों के पूर्वानुमानों के अनुसार उष्णकटिबंधीय और उप-उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों पर इसका भारी नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। जलवायु परिवर्तन बुरा है, लेकिन भू-तकनीकी इंजीनियरिंग में इसे बदतर बनाने की क्षमता है।
पेरिस सम्मेलन के निर्माता अपने दर्शकों से ऐसी प्रौद्योगिकियों पर भरोसा करनेवाली कहानी पर विश्वास करने के लिए कहेंगे जो धुएँ और दर्पणों से अधिक प्रभावी नहीं है। यह ज़रूरी है कि हम उनसे आगे देखना सीखें। पर्दा उठने पर झूठे वादे किए जाएँगे और यदि दर्शक कोई कार्रवाई नहीं करेंगे तो यह ऐसी नीतियों के साथ बंद हो जाएगा जो केवल तबाही का कारण ही बन सकती हैं।
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Though the United States has long led the world in advancing basic science and technology, it is hard to see how this can continue under President Donald Trump and the country’s ascendant oligarchy. America’s rejection of Enlightenment values will have dire consequences.
predicts that Donald Trump’s second administration will be defined by its rejection of Enlightenment values.
Will the China hawks in Donald Trump’s administration railroad him into a confrontation that transcends tariffs and embraces financial sanctions of the type the US and the European Union imposed on Russia? If they do, China's leaders will have to decide whether to decouple from the dollar-based international monetary system.
thinks the real choice facing Chinese leaders may be whether to challenge the dollar's hegemony head-on.
ओटावा – दिसंबर में पेरिस में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में हॉलीवुड की किसी सुपरहिट फिल्म की तरह सभी नाटकीय तत्व मौजूद होंगे। इसमें ढेरों कलाकार होंगे: सभी राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री मुख्य मंच पर विराजमान होंगे, और उनका साथ देने के लिए सहयोगी कलाकारों के रूप में हजारों प्रदर्शनकारियों, दंगा पुलिस और मीडिया की बसों का भारी हुजूम होगा। इसकी पटकथा भले ही अभी तक गुप्त हो, लेकिन इसका कथानक पहले से ही जगज़ाहिर हो चुका है: 2009 में कोपेनहेगन में विफल रही वार्ताओं के बिल्कुल विपरीत, इस बार इस धरती को अवश्य सफलता मिलेगी।
यह कथानक आकर्षक तो है, लेकिन इसका निर्वाह करना मुश्किल है। दुनिया को यह बताया जाएगा कि सद्भावना और कठोर सौदेबाज़ी रंग लाई है। सरकारें ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जनों में स्वैच्छिक कटौतियाँ करने के लिए सहमत हो गई हैं जिससे धरती को 2 डिग्री सेल्सियस से अधिक गर्म होने से रोका जा सकेगा। फिर विलक्षण यांत्रिक रूप से प्रकट दैवी शक्ति से यह रहस्योद्धाटन होगा कि दुनिया की जीवाश्म ईंधन की सबसे बड़ी कंपनियाँ अर्थात तथाकथित महाशक्तियाँ इस पर सहमत हो गई हैं कि वे कार्बन को स्रोत पर पकड़कर, इसे वायुमंडल से बाहर निकालकर, और इसका भूमिगत भंडारण करके शुद्ध उत्सर्जनों को 2100 तक शून्य पर ले आएँगी। इस प्रकार धरती को बचा लिया जाएगा, और अर्थव्यवस्था फलने-फूलने के लिए मुक्त होगी। संगीत आरंभ होने के साथ पटाक्षेप हो जाएगा।
समस्या यह है कि यह कहानी वास्तविक नहीं, बल्कि काल्पनिक है। इसके लिए अपेक्षित प्रौद्योगिकी का आविष्कार अभी किया जाना बाकी है, और शुद्ध उत्सर्जनों को शून्य तक लाना कदापि संभव नहीं है। और, हॉलीवुड की फ़िल्म की तरह, पेरिस सम्मेलन का संदेश उन लोगों के द्वारा अत्यधिक प्रभावित किया हुआ होगा जिनके पास सबसे अधिक धन है।
इसका हिसाब-किताब लगाना मुश्किल नहीं है। पूरी तरह से जीवाश्म ईंधनों के उपयोग के लिए निर्मित विश्व की ऊर्जा के बुनियादी ढाँचे का मूल्य $55 ट्रिलियन है। जीवाश्म ईंधन के भंडारों – जिनमें से अधिकतर का स्वामित्व महाशक्तियों के पास है – का मौद्रिक मूल्य लगभग $28 ट्रिलियन है।
जीवाश्म ईंधन के उद्योग का प्रभाव इससे स्पष्ट है कि दुनिया भर में सरकारों द्वारा इस साल इस पर सब्सिडी देने के लिए लगभग $5.3 ट्रिलियन खर्च किए जाने की संभावना है, जिसमें इसके स्वास्थ्य और पर्यावरण संबंधी प्रतिकूल प्रभावों को दूर करने के लिए किए जानेवाले आवश्यक भारी परिव्यय शामिल हैं। दूसरे शब्दों में, पेरिस में सरकारों की बैठक में जलवायु परिवर्तन के कारणों के लिए सब्सिडी देने पर अधिक खर्च किया जाएगा, बजाय उस खर्च के जो वैश्विक स्वास्थ्य देखभाल पर या इस रूप में जलवायु परिवर्तन के शमन और अनुकूलन पर किया जाता है।
लेकिन यह पेरिस में बयान की जानेवाली कहानी का हिस्सा नहीं होगा। वहाँ, दुनिया की जनता को "भू-तकनीकी इंजीनियरिंग" के दो अप्रमाणित रूपों पर आधारित कथा को प्रस्तुत किया जाएगा जिसके समर्थक धरती की प्रणाली में हेरफेर करना चाहते हैं। जिस प्रयास पर सबसे अधिक मात्रा में ध्यान दिया जाएगा वह कार्बन को पकड़ने और भंडारण से प्राप्त जैव-ऊर्जा (BECCS) है। मई में, संयुक्त राज्य अमेरिका के ऊर्जा विभाग ने इस प्रौद्योगिकी पर चर्चा करने के लिए एक निजी बैठक आयोजित की, जो महाशक्तियों द्वारा अपनी परिसंपत्तियों की रक्षा करने के लिए इस्तेमाल किया जानेवाला अपनी आबरू बचाने का साधन होगा।
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जीवाश्म ईंधन के उत्पादक कार्बन पकड़ने को इसलिए बढ़ावा देते हैं ताकि वे अपनी खानों को खुला रख सकें और पंपों को चालू रख सकें। यह धरती के लिए दुर्भाग्य की बात है कि बहुत से वैज्ञानिकों को यह तकनीकी रूप से असंभव और आर्थिक रूप से विनाशकारी लगता है - विशेष रूप से यदि ऐसी प्रौद्योगिकी को तब लागू किया जाता है जब अराजक जलवायु परिवर्तन से बचने की आवश्यकता हो।
तापमानों को नियंत्रण से बाहर तक बढ़ने से रोकने के लिए सौर विकिरण प्रबंधन नामक एक दूसरे भू-तकनीकी इंजीनियरिंग उपाय की आवश्यकता होगी। इसके मूल में विचार सूरज की रोशनी को रोकने के लिए वायुमंडल में 30 किलोमीटर की दूरी तक सल्फेट को पंप करने के लिए पाइपों का उपयोग करने जैसी तकनीकों का उपयोग करके ज्वालामुखी विस्फोट के प्राकृतिक रूप से ठंडा होने की प्रक्रिया की नकल करना है।
ब्रिटेन की रॉयल सोसाइटी का मानना है कि इस तरह की प्रौद्योगिकी का उपयोग करना अपरिहार्य हो सकता है, और यह अन्य देशों में अपने समकक्षों के साथ काम कर रही है ताकि यह पता लगाया जा सके कि इसके उपयोग को किन तरीकों से नियंत्रित किया जाना चाहिए। इससे पहले इस वर्ष, अमेरिका की विज्ञान की राष्ट्रीय अकादमियों ने इस तकनीक को अनमना समर्थन दिया, और चीन की सरकार ने मौसम संशोधन में भारी निवेश करने की घोषणा की जिसमें सौर विकिरण प्रबंधन शामिल हो सकता है। रूस इस प्रौद्योगिकी के विकास के लिए पहले से ही काम कर रहा है।
कार्बन को पकड़ने के विपरीत, सूर्य की रोशनी को रोकने में वास्तव में वैश्विक तापमानों को कम करने की क्षमता है। सिद्धांत रूप में, यह प्रौद्योगिकी सरल, सस्ती, और किसी एक देश या सहयोगियों के एक छोटे समूह द्वारा लागू किए जाने में सक्षम है; इसके लिए संयुक्त राष्ट्र की सहमति की आवश्यकता नहीं है।
लेकिन सौर विकिरण प्रबंधन वातावरण से ग्रीन हाउस गैसों को दूर नहीं करता है। यह केवल उनके प्रभावों को छिपा देता है। पाइपों के बंद हो जाने पर, धरती का तापमान बढ़ने लग जाएगा। प्रौद्योगिकी से इसे कुछ समय के लिए रोका जा सकता है, लेकिन इससे धरती के थर्मोस्टेट का नियंत्रण उन लोगों के हाथ में आ जाता है जिनके हाथ में पाइप हों। यहाँ तक कि प्रौद्योगिकी के पैरोकार भी यह मानते हैं कि उनके कंप्यूटर मॉडलों के पूर्वानुमानों के अनुसार उष्णकटिबंधीय और उप-उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों पर इसका भारी नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। जलवायु परिवर्तन बुरा है, लेकिन भू-तकनीकी इंजीनियरिंग में इसे बदतर बनाने की क्षमता है।
पेरिस सम्मेलन के निर्माता अपने दर्शकों से ऐसी प्रौद्योगिकियों पर भरोसा करनेवाली कहानी पर विश्वास करने के लिए कहेंगे जो धुएँ और दर्पणों से अधिक प्रभावी नहीं है। यह ज़रूरी है कि हम उनसे आगे देखना सीखें। पर्दा उठने पर झूठे वादे किए जाएँगे और यदि दर्शक कोई कार्रवाई नहीं करेंगे तो यह ऐसी नीतियों के साथ बंद हो जाएगा जो केवल तबाही का कारण ही बन सकती हैं।