नई दिल्ली - दुनिया के सबसे उदार संविधानों में से एक को अंगीकार करने के छियासठ साल बाद भारत अपनी दंड संहिता के औपनिवेशिक युग के एक प्रावधान, धारा 377 को लेकर ज्वलंत बहस में डूबा हुआ है जो "किसी पुरुष, स्त्री या जानवर के साथ स्वैच्छिक रूप से ऐंद्रिक संभोग करने वाले व्यक्ति का आपराधीकरण करती है।" हालांकि इसका व्यापक स्तर पर उपयोग नहीं किया गया है – पिछले साल धारा 377 के अंतर्गत 578 गिरफ़्तारियां हुई थीं – फिर भी यह कानून भारत में यौन अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न, परेशानी और भय दोहन का साधन बना हुआ है। इसे अवश्य बदला जाना चाहिए।
नई दिल्ली - दुनिया के सबसे उदार संविधानों में से एक को अंगीकार करने के छियासठ साल बाद भारत अपनी दंड संहिता के औपनिवेशिक युग के एक प्रावधान, धारा 377 को लेकर ज्वलंत बहस में डूबा हुआ है जो "किसी पुरुष, स्त्री या जानवर के साथ स्वैच्छिक रूप से ऐंद्रिक संभोग करने वाले व्यक्ति का आपराधीकरण करती है।" हालांकि इसका व्यापक स्तर पर उपयोग नहीं किया गया है – पिछले साल धारा 377 के अंतर्गत 578 गिरफ़्तारियां हुई थीं – फिर भी यह कानून भारत में यौन अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न, परेशानी और भय दोहन का साधन बना हुआ है। इसे अवश्य बदला जाना चाहिए।