बर्लिन – 21 सितंबर को जनता की जलवायु पदयात्रा उभरते वैश्विक जलवायु आंदोलन के लिए एक ऐतिहासिक घटना थी जिसमें 400,000 से अधिक लोग न्यूयॉर्क शहर की सड़कों पर उतर आए थे। लेकिन न्यूयॉर्क इसका केवल एक आरंभ मात्र था। अर्जेंटीना से ऑस्ट्रेलिया तक, 166 देशों में लोगों ने 2,800 से अधिक कार्यक्रमों और रैलियों में भाग लिया। दो लाख कार्यकर्ताओं ने एक ऑनलाइन याचिका के माध्यम से मांग की कि सरकारों को 100% स्वच्छ ऊर्जा को अपनाना चाहिए। 2009 में संयोगवश हुए कोपेनहेगन जलवायु परिवर्तन सम्मेलन के बाद पहली बार, आभासी जलवायु सक्रियता वास्तविक दुनिया में प्रकट हुई। क्यों?
नागरिकों को जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के बारे में चिंता है, और वे जानते हैं कि समस्या जीवाश्म ईंधन हैं। वे अब जान चुके हैं कि स्वार्थी शक्तियाँ आवश्यक स्वच्छ ऊर्जा में बदलाव को अवरुद्ध कर रही हैं, और अब वे इस बात पर बिल्कुल विश्वास नहीं करते हैं कि उनकी सरकारें इस भूमंडल के भविष्य को सुधारने के लिए पर्याप्त कोशिश कर रही हैं। यह केवल इसमें भाग लेने वाले लोगों की रिकार्ड संख्या से ही नहीं बल्कि पदयात्रा में भाग लेनेवालों की विविधता - शहरी कार्यकर्ता, स्वदेशी समूह, विभिन्न धर्मों और राजनीतिक विचारों के अनुयायियों, और उससे भी अधिक स्पष्ट रूप से बूढ़े और जवान सभी के सम्मिलित होने - से भी परिलक्षित हुई।
लोग आज जलवायु परिवर्तन और दैनिक जीवन के बीच प्राकृतिक संबंधों को देख पा रहे हैं। शिक्षक अक्षय ऊर्जा पर चलने वाले स्कूलों के पक्षधर थे, महिलाओं ने अधिक स्वस्थ कृषि का समर्थन किया, दादियों-नानियों ने अपने पोते-पोतियों नाती-नातियों के लिए स्वच्छ हवा की मांग की, यूनियनें नौकरी में हरित रूपांतरण चाहती हैं, और शहर महापौर ऊर्जा-कुशल इमारतों में निवेश चाहते हैं।
कोपेनहेगन सम्मेलन विफल होने के पांच साल बाद, आखिरकार सरकारों को चाहिए कि वे अब जिम्मेदारी से कार्य करें। संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की-मून की मेजबानी में इस सप्ताह जलवायु शिखर सम्मेलन का आयोजन सरकार, व्यवसाय, और नागरिक समाज के नेताओं को इकट्ठा करके कार्रवाई की गति में तेजी लाने के उद्देश्य से किया गया था। इसका उद्देश्य 2015 में पेरिस में जलवायु समझौता-वार्ता के लिए सरकारों के लिए अनुकूल परिस्थितियों का निर्माण करना था। और, हालांकि संयुक्त राष्ट्र द्वारा उन वायदों को लागू नहीं किया जा सकता जो नेताओं ने किए हैं, शिखर सम्मेलन ने एक लोकप्रिय प्रदर्शन को उत्प्रेरित किया है जिसने राजनीतिक सुर्खियों को वापस जलवायु परिवर्तन की चुनौती की ओर मोड़ दिया है, जब तक सरकारें विश्वसनीय कार्रवाई नहीं करती हैं तब तक इसके वहीं बने रहने की संभावना है।
2009 के बाद से जो बदला है वह जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के बारे में चिंता की तीव्रता है। इस बीच, न्यूयॉर्क-वासियों को तूफ़ान सैंडी का सामना करना पड़ा, जबकि तूफान हैयान ने फिलीपींस को तबाह कर दिया। जलवायु के रिकॉर्ड दुनिया भर में लगातार टूटते जा रहे हैं। केवल 2014 में ही, आम लोगों को ऑस्ट्रेलिया में लू, पाकिस्तान में बाढ़, और मध्य अमेरिका में सूखे का प्रकोप सहना पड़ा, जबकि यह दिखाया गया है कि पश्चिम अंटार्कटिक की बर्फ की परत का पिघलना एक अपरिवर्तनीय घटना है।
परिणामस्वरूप, वैश्विक बहस का मुद्दा कार्रवाई की लागत से हटकर कार्रवाई न करने की लागत पर आ गया है। और हालांकि, जलवायु क्षति की लागतें चौंका देनेवाली हैं, वैज्ञानिक अनुसंधान से यह पता चलता है कि इसे कम करने की लागतों को बर्दाश्त किया जा सकता है।
अक्षय ऊर्जा के उत्पादन में वृद्धि से यह स्पष्ट हो गया है। लोग स्वच्छ ऊर्जा चाहते हैं, प्रौद्योगिकी उपलब्ध है और लाभदायक हैं, और, लाखों लोगों को विश्वसनीय बिजली प्राप्त न हो सकने के कारण, ऊर्जा के अक्षय स्रोतों का उद्भव एक संजीवनी के रूप में है। पवन और सौर ऊर्जा की वैश्विक क्षमता 2009 के स्तर से बढ़कर तीन गुना हो गई है, और नवीकरणीय ऊर्जा अब विश्व की विद्युत आपूर्ति के पांचवें हिस्से से अधिक उपलब्ध करती है।
वास्तव में, विश्व भर में जोड़ी जानेवाली नई बिजली का हर दूसरा मेगावाट हरित होता है, जिसका अर्थ है कि 2030 में अक्षय ऊर्जा का अंश 50% तक पहुंच सकता है। स्वच्छ ऊर्जा एक खेल परिवर्तक है, क्योंकि यह अधिकाधिक विद्युत को वापस नागरिकों के हाथों में दे देता है, जिससे जीवाश्म ईंधन उद्योग को सीधी चुनौती मिलती है। जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में स्पष्ट रूप से अगला कदम यही है कि इस उद्योग के लिए सभी प्रकार की आर्थिक सहायता को बंद कर दिया जाए।
इस सप्ताह के संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन से अंतर्राष्ट्रीय जलवायु समझौते के लिए वार्ता की दिशा को तो प्रभावित नहीं किया जा सकता। लेकिन इसने ध्यान को वहां वापस केंद्रित कर दिया है जहां यह होना चाहिए: वास्तविक लोगों का अपनी सरकारों से वास्तविक परिवर्तन की मांग करना। नागरिकों ने यह दिखा दिया है कि वे प्रतिबद्ध हैं और वे अपनी बात कहेंगे। जनता की जलवायु पदयात्रा केवल एक शुरूआत थी।
बर्लिन – 21 सितंबर को जनता की जलवायु पदयात्रा उभरते वैश्विक जलवायु आंदोलन के लिए एक ऐतिहासिक घटना थी जिसमें 400,000 से अधिक लोग न्यूयॉर्क शहर की सड़कों पर उतर आए थे। लेकिन न्यूयॉर्क इसका केवल एक आरंभ मात्र था। अर्जेंटीना से ऑस्ट्रेलिया तक, 166 देशों में लोगों ने 2,800 से अधिक कार्यक्रमों और रैलियों में भाग लिया। दो लाख कार्यकर्ताओं ने एक ऑनलाइन याचिका के माध्यम से मांग की कि सरकारों को 100% स्वच्छ ऊर्जा को अपनाना चाहिए। 2009 में संयोगवश हुए कोपेनहेगन जलवायु परिवर्तन सम्मेलन के बाद पहली बार, आभासी जलवायु सक्रियता वास्तविक दुनिया में प्रकट हुई। क्यों?
नागरिकों को जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के बारे में चिंता है, और वे जानते हैं कि समस्या जीवाश्म ईंधन हैं। वे अब जान चुके हैं कि स्वार्थी शक्तियाँ आवश्यक स्वच्छ ऊर्जा में बदलाव को अवरुद्ध कर रही हैं, और अब वे इस बात पर बिल्कुल विश्वास नहीं करते हैं कि उनकी सरकारें इस भूमंडल के भविष्य को सुधारने के लिए पर्याप्त कोशिश कर रही हैं। यह केवल इसमें भाग लेने वाले लोगों की रिकार्ड संख्या से ही नहीं बल्कि पदयात्रा में भाग लेनेवालों की विविधता - शहरी कार्यकर्ता, स्वदेशी समूह, विभिन्न धर्मों और राजनीतिक विचारों के अनुयायियों, और उससे भी अधिक स्पष्ट रूप से बूढ़े और जवान सभी के सम्मिलित होने - से भी परिलक्षित हुई।
लोग आज जलवायु परिवर्तन और दैनिक जीवन के बीच प्राकृतिक संबंधों को देख पा रहे हैं। शिक्षक अक्षय ऊर्जा पर चलने वाले स्कूलों के पक्षधर थे, महिलाओं ने अधिक स्वस्थ कृषि का समर्थन किया, दादियों-नानियों ने अपने पोते-पोतियों नाती-नातियों के लिए स्वच्छ हवा की मांग की, यूनियनें नौकरी में हरित रूपांतरण चाहती हैं, और शहर महापौर ऊर्जा-कुशल इमारतों में निवेश चाहते हैं।
कोपेनहेगन सम्मेलन विफल होने के पांच साल बाद, आखिरकार सरकारों को चाहिए कि वे अब जिम्मेदारी से कार्य करें। संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की-मून की मेजबानी में इस सप्ताह जलवायु शिखर सम्मेलन का आयोजन सरकार, व्यवसाय, और नागरिक समाज के नेताओं को इकट्ठा करके कार्रवाई की गति में तेजी लाने के उद्देश्य से किया गया था। इसका उद्देश्य 2015 में पेरिस में जलवायु समझौता-वार्ता के लिए सरकारों के लिए अनुकूल परिस्थितियों का निर्माण करना था। और, हालांकि संयुक्त राष्ट्र द्वारा उन वायदों को लागू नहीं किया जा सकता जो नेताओं ने किए हैं, शिखर सम्मेलन ने एक लोकप्रिय प्रदर्शन को उत्प्रेरित किया है जिसने राजनीतिक सुर्खियों को वापस जलवायु परिवर्तन की चुनौती की ओर मोड़ दिया है, जब तक सरकारें विश्वसनीय कार्रवाई नहीं करती हैं तब तक इसके वहीं बने रहने की संभावना है।
2009 के बाद से जो बदला है वह जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के बारे में चिंता की तीव्रता है। इस बीच, न्यूयॉर्क-वासियों को तूफ़ान सैंडी का सामना करना पड़ा, जबकि तूफान हैयान ने फिलीपींस को तबाह कर दिया। जलवायु के रिकॉर्ड दुनिया भर में लगातार टूटते जा रहे हैं। केवल 2014 में ही, आम लोगों को ऑस्ट्रेलिया में लू, पाकिस्तान में बाढ़, और मध्य अमेरिका में सूखे का प्रकोप सहना पड़ा, जबकि यह दिखाया गया है कि पश्चिम अंटार्कटिक की बर्फ की परत का पिघलना एक अपरिवर्तनीय घटना है।
परिणामस्वरूप, वैश्विक बहस का मुद्दा कार्रवाई की लागत से हटकर कार्रवाई न करने की लागत पर आ गया है। और हालांकि, जलवायु क्षति की लागतें चौंका देनेवाली हैं, वैज्ञानिक अनुसंधान से यह पता चलता है कि इसे कम करने की लागतों को बर्दाश्त किया जा सकता है।
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अक्षय ऊर्जा के उत्पादन में वृद्धि से यह स्पष्ट हो गया है। लोग स्वच्छ ऊर्जा चाहते हैं, प्रौद्योगिकी उपलब्ध है और लाभदायक हैं, और, लाखों लोगों को विश्वसनीय बिजली प्राप्त न हो सकने के कारण, ऊर्जा के अक्षय स्रोतों का उद्भव एक संजीवनी के रूप में है। पवन और सौर ऊर्जा की वैश्विक क्षमता 2009 के स्तर से बढ़कर तीन गुना हो गई है, और नवीकरणीय ऊर्जा अब विश्व की विद्युत आपूर्ति के पांचवें हिस्से से अधिक उपलब्ध करती है।
वास्तव में, विश्व भर में जोड़ी जानेवाली नई बिजली का हर दूसरा मेगावाट हरित होता है, जिसका अर्थ है कि 2030 में अक्षय ऊर्जा का अंश 50% तक पहुंच सकता है। स्वच्छ ऊर्जा एक खेल परिवर्तक है, क्योंकि यह अधिकाधिक विद्युत को वापस नागरिकों के हाथों में दे देता है, जिससे जीवाश्म ईंधन उद्योग को सीधी चुनौती मिलती है। जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में स्पष्ट रूप से अगला कदम यही है कि इस उद्योग के लिए सभी प्रकार की आर्थिक सहायता को बंद कर दिया जाए।
इस सप्ताह के संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन से अंतर्राष्ट्रीय जलवायु समझौते के लिए वार्ता की दिशा को तो प्रभावित नहीं किया जा सकता। लेकिन इसने ध्यान को वहां वापस केंद्रित कर दिया है जहां यह होना चाहिए: वास्तविक लोगों का अपनी सरकारों से वास्तविक परिवर्तन की मांग करना। नागरिकों ने यह दिखा दिया है कि वे प्रतिबद्ध हैं और वे अपनी बात कहेंगे। जनता की जलवायु पदयात्रा केवल एक शुरूआत थी।