मुंबई - जब विश्व वैश्विक आर्थिक संकट से उबरने के लिए जूझ रहा है, तो लगता है कि कई उन्नत देशों ने इसके परिप्रेक्ष्य में जो अपरंपरागत मौद्रिक नीतियाँ अपनाईं, उन्हें व्यापक स्वीकृति मिली है। परंतु जिन अर्थव्यवस्थाओं में ऋण का भार बहुत अधिक है, नीति अनिश्चित है, या ढाँचागत सुधार की आवश्यकता के कारण घरेलू माँग में बाधा उत्पन्न होती है, उनके मामले में यह प्रश्न उचित है कि क्या इन नीतियों के घरेलू लाभ अन्य अर्थव्यवस्थाओं को हुए हानिकारक अतिप्रवाह से ज़्यादा हैं।
मुंबई - जब विश्व वैश्विक आर्थिक संकट से उबरने के लिए जूझ रहा है, तो लगता है कि कई उन्नत देशों ने इसके परिप्रेक्ष्य में जो अपरंपरागत मौद्रिक नीतियाँ अपनाईं, उन्हें व्यापक स्वीकृति मिली है। परंतु जिन अर्थव्यवस्थाओं में ऋण का भार बहुत अधिक है, नीति अनिश्चित है, या ढाँचागत सुधार की आवश्यकता के कारण घरेलू माँग में बाधा उत्पन्न होती है, उनके मामले में यह प्रश्न उचित है कि क्या इन नीतियों के घरेलू लाभ अन्य अर्थव्यवस्थाओं को हुए हानिकारक अतिप्रवाह से ज़्यादा हैं।