अक्रा – यूनाइटेड किंगडम के ऑफिस फॉर नैशनल स्टैटिस्टिक्स के अद्यातन् अनुमान के अनुसार अवैध औषधियों के कारोबार से वहां की अर्थव्यवस्था में हर साल 4.4 अरब पौंड (7.6 अरब डॉलर) जुड़ते हैं. इससे अवैध मादक पदार्थों के कारोबार के सिर चकराने वाले विशाल पैमाने का आभास होता है. पश्चिम अफ्रीका जैसे क्षेत्रों के लिए जिनकी अर्थव्यवस्था ना तो यूके जैसी विशाल है और ना ही विकसित इस गतिविधि का प्रभाव कहीं अधिक घातक हो सकता है.
आज पश्चिम अफ्रीका अधिकाधिक वैश्विक मादक पदार्थों के व्यापार में उलझता जा रहा है. इसकी अवस्थिति इसे लैटिन अमेरिकी व एशियाई उत्पादन केंद्रों और यूरोप तथा संयुक्त राज्य अमेरिका के उपभोक्ता बाजारों के बीच बड़े पारगमन बिंदु के रूप में दुरुपयोग होने के नाते और कमजोर बना रही है.
परंतु मध्य अमेरिका का अनुभव दर्शाता है कि पारगमन वाले देशों का केवल मादक पदार्थों की तस्करी के लिए गलियारे के तौर पर ही उपयोग नहीं होता है. अवैध औषधियों और उनसे जुड़े धन के कारण उनके समाज में अस्थिरता भी फैलती है. यह उद्विग्नकारी घटनाक्रम - जो ‘‘मादक औषधियों के खिलाफ विफल वैश्विक लड़ाई’’ का दुष्परिणाम है - हमारे क्षेत्र में जो कुछ आर्थिक व सामाजिक लाभ मिलने लगे हैं उन्हें उलटा कर देने का खतरा उत्पन्न कर रहा है.
अभी तक पश्चिम अफ्रीका सबसे बुरी सीमित किंतु नियमित हिंसा से बचा रहा है जिनसे मध्य अमेरिका औषधियों के पारगमन के दौरान ग्रस्त रहा है. लेकिन क्योंकि इस धंधे में भारी रकम दांव पर रहती है, अतः सुस्ती की कोई गुंजाइश नहीं है. पश्चिम अफ्रीका में कोकीन व्यापार का पैमाना तो उस क्षेत्र के अनेक देशों के मिले-जुले सरकारी बजट से भी कहीं अधिक है.
हम जानते हैं कि मादक पदार्थों के व्यापार ने गिनी-बिसाऊ और माली जैसे देशों में राजनीतिक उथल-पुथल में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष भूमिका निभाई है. इसलिए मादक पदार्थों के तस्करों के खिलाफ राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय प्रयास तेज करने होंगे. इसमें उन लोगों को निशाना बनाना चाहिए जो नेटवर्कों को चलाते हैं बजाय इसके कि उनके प्यादों को पकड़ने में विरल कानून प्रवर्तन संसाधनों को जाया किया जाए. हमें उन लोगों को पकड़ना होगा जो इस धंधे में सबसे ज्यादा लाभ कमाते हैं भले ही वे कोई भी हों और उनकी कैसी भी हैसियत हो.
लेकिन इस क्षेत्र के देशों में केवल मादक पदार्थों के अवैध कारोबार के कारण ही अस्थिरता नहीं आ रही हैः इन पदार्थों की खपत/सेवन भी बड़ी समस्या बनती जा रही है. मेरे द्वारा गठित और नाइजीरिया के पूर्व राष्ट्रपति ओलुसेगुन ओबासांजो की अध्यक्षता वाले वेस्ट अफ्रीका कमीशन ऑन ड्रग्स की ताजा रिपोर्ट बताती है कि कोकीन, हैरोइन और स्थानीय स्तर पर निर्मित मेथएम्फीटामीन जैसी नशीली दवाएं इस पूरे क्षेत्र में खुलेआम बिक रही हैं. इससे इस इलाके के खासकर युवा लोगों में इन दवाओं का उपयोग और उन पर निर्भरता बढ़ रही है.
लेकिन यह पूरा क्षेत्र दवाओं के उपयोग और उन पर निर्भरता से निपटने के लिए ना तो तैयार है और ना ही उनके पास इतने साधन हैं. कुल मिला कर ये किया जा रहा है कि दवाओं का उपयोग करने वालों को प्रताडि़त और दंडित किया जाता है. पर उन्हें समाज के हाशिये पर ढकेलने या जेल में डालने मात्र से ही समस्या का समाधान नहीं होगा. इसके विपरीत इससे स्वास्थ्य समस्याएं और विकराल होंगी जिससे पश्चिम अफ्रीका की पहले से काम के बोझ से दबी न्यायिक व्यवस्था पर और भारी दबाव पड़ेगा.
इसकी बजाए कमीशन की रिपोर्ट में नशीली दवाओं के दुरुपयोग से निपटने के लिए अलग तरीका सुझाया गया है. इसमें इसे अपराध-न्याय मुद्दे के रूप में नहीं बल्कि जन-स्वास्थ्य समस्या के तौर पर देखा गया है. इसका अर्थ है कि नशीली दवाओं की लत के उपचार की सुविधाओं व कार्यक्रमों के लगभग पूर्ण अभाव को दूर किया जाए और दवाओं के दुरुपयोग के नियंत्रण व निगरानी के लिए प्रशिक्षित कर्मियों की नियुक्ति की जाए.
कमीशन को ज्ञात है कि पहले से खस्ताहाल स्वास्थ्य-सेवा बजटों पर और भी अन्य जरूरी मांगों का दबाव है. लेकिन इस चुनौती का इतना अधिक महत्त्व है - और इससे पार पाने में विफलता के गंभीर परिणाम होंगे - कि कमीशन का सुझाव है कि इस पूरे क्षेत्र में न्यूनतम मानक वाली किसी दवा-उपचार नीति को तुरंत अपनाया जाए.
इसमें दवाओं की लत के उपचार व संबंधित स्वास्थ्य सेवाओं की स्थापना शामिल हैं. नुकसान को कम करने वाले उपाय भी लागू करने होंगे, यथा सुइयों की अदला-बदली के कार्यक्रम जो एचआईवी व दवाओं से जुड़ी मौतों को कम करने में अपनी उपयोगिता साबित कर चुके हैं. आज तक पूरे पश्चिम अफ्रीका में सेनेगल ही एकमात्र देश है जिसने अपने यहां सरकार द्वारा संचालित हानि-न्यूनीकरण कार्यक्रम को कुछ हद तक लागू किया है.
नशीली दवाओं के प्रभाव से निपटने के लिए जानकारीपूर्ण, मानवीय तथा सुसंगठित नीति अपनाने के लिए नेतृत्व की जरूरत है जिसके लिए इस क्षेत्र के सभी देशों को मिल-जुल कर प्रयास करने होंगे. इसके लिए कमीशन सरकारों, नागरिक-सामाजिक समूहों तथा क्षेत्रीय संगठनों से साझी-प्रतिबद्घता का आवाह्न करता है. हम इस मुद्दे को और अधिक दरी के नीचे नहीं छिपा सकते हैं और ना ही ये कह सकते हैं कि यह हमारी समस्या नहीं है.
रिपोर्ट इन प्रयासों के लिए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से और अधिक समर्थन का आग्रह करती है. पश्चिमी अफ्रीकी देश अवैध नशीली दवाओं के उत्पादन व सेवन के प्रमुख केंद्र हैं. इन देशों को नशीली दवाओं की रोकथाम, उपचार तथा नुकसान को कम करने के उपायों पर धन खर्च करना चाहिए बजाए इसके कि वे धरपकड़ और कानून लागू करने में निवेश करें.
दिशा परिवर्तन के बगैर पश्चिमी अफ्रीका में दवाओं की तस्करी, उत्पादन व दुरुपयोग संस्थाओं की अहमियत कम करते रहेंगे, जन स्वास्थ्य को खतरा उत्पन्न करेंगे तथा विकास व तरक्की को नष्ट करते रहेंगे. लेकिन दवाओं संबंधी कानूनों में सुधार, पुराने नशेडि़यों को उपचार की सुविधाएं प्रदान करने तथा ऊंची हैसियत वाले तस्करों को पकड़ने से समुदायों, परिवारों व व्यक्तियों पर नशीली दवाओं के विनाशकारी प्रभाव कम होंगे. राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों पर पुनः दृष्टि केंद्रित करने का साहस होना चाहिए. इससे हम यह सुनिश्चित कर सकेंगे कि हमारे युवा स्वस्थ व सुरक्षित रूप से पनप सकें.
अक्रा – यूनाइटेड किंगडम के ऑफिस फॉर नैशनल स्टैटिस्टिक्स के अद्यातन् अनुमान के अनुसार अवैध औषधियों के कारोबार से वहां की अर्थव्यवस्था में हर साल 4.4 अरब पौंड (7.6 अरब डॉलर) जुड़ते हैं. इससे अवैध मादक पदार्थों के कारोबार के सिर चकराने वाले विशाल पैमाने का आभास होता है. पश्चिम अफ्रीका जैसे क्षेत्रों के लिए जिनकी अर्थव्यवस्था ना तो यूके जैसी विशाल है और ना ही विकसित इस गतिविधि का प्रभाव कहीं अधिक घातक हो सकता है.
आज पश्चिम अफ्रीका अधिकाधिक वैश्विक मादक पदार्थों के व्यापार में उलझता जा रहा है. इसकी अवस्थिति इसे लैटिन अमेरिकी व एशियाई उत्पादन केंद्रों और यूरोप तथा संयुक्त राज्य अमेरिका के उपभोक्ता बाजारों के बीच बड़े पारगमन बिंदु के रूप में दुरुपयोग होने के नाते और कमजोर बना रही है.
परंतु मध्य अमेरिका का अनुभव दर्शाता है कि पारगमन वाले देशों का केवल मादक पदार्थों की तस्करी के लिए गलियारे के तौर पर ही उपयोग नहीं होता है. अवैध औषधियों और उनसे जुड़े धन के कारण उनके समाज में अस्थिरता भी फैलती है. यह उद्विग्नकारी घटनाक्रम - जो ‘‘मादक औषधियों के खिलाफ विफल वैश्विक लड़ाई’’ का दुष्परिणाम है - हमारे क्षेत्र में जो कुछ आर्थिक व सामाजिक लाभ मिलने लगे हैं उन्हें उलटा कर देने का खतरा उत्पन्न कर रहा है.
अभी तक पश्चिम अफ्रीका सबसे बुरी सीमित किंतु नियमित हिंसा से बचा रहा है जिनसे मध्य अमेरिका औषधियों के पारगमन के दौरान ग्रस्त रहा है. लेकिन क्योंकि इस धंधे में भारी रकम दांव पर रहती है, अतः सुस्ती की कोई गुंजाइश नहीं है. पश्चिम अफ्रीका में कोकीन व्यापार का पैमाना तो उस क्षेत्र के अनेक देशों के मिले-जुले सरकारी बजट से भी कहीं अधिक है.
हम जानते हैं कि मादक पदार्थों के व्यापार ने गिनी-बिसाऊ और माली जैसे देशों में राजनीतिक उथल-पुथल में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष भूमिका निभाई है. इसलिए मादक पदार्थों के तस्करों के खिलाफ राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय प्रयास तेज करने होंगे. इसमें उन लोगों को निशाना बनाना चाहिए जो नेटवर्कों को चलाते हैं बजाय इसके कि उनके प्यादों को पकड़ने में विरल कानून प्रवर्तन संसाधनों को जाया किया जाए. हमें उन लोगों को पकड़ना होगा जो इस धंधे में सबसे ज्यादा लाभ कमाते हैं भले ही वे कोई भी हों और उनकी कैसी भी हैसियत हो.
लेकिन इस क्षेत्र के देशों में केवल मादक पदार्थों के अवैध कारोबार के कारण ही अस्थिरता नहीं आ रही हैः इन पदार्थों की खपत/सेवन भी बड़ी समस्या बनती जा रही है. मेरे द्वारा गठित और नाइजीरिया के पूर्व राष्ट्रपति ओलुसेगुन ओबासांजो की अध्यक्षता वाले वेस्ट अफ्रीका कमीशन ऑन ड्रग्स की ताजा रिपोर्ट बताती है कि कोकीन, हैरोइन और स्थानीय स्तर पर निर्मित मेथएम्फीटामीन जैसी नशीली दवाएं इस पूरे क्षेत्र में खुलेआम बिक रही हैं. इससे इस इलाके के खासकर युवा लोगों में इन दवाओं का उपयोग और उन पर निर्भरता बढ़ रही है.
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लेकिन यह पूरा क्षेत्र दवाओं के उपयोग और उन पर निर्भरता से निपटने के लिए ना तो तैयार है और ना ही उनके पास इतने साधन हैं. कुल मिला कर ये किया जा रहा है कि दवाओं का उपयोग करने वालों को प्रताडि़त और दंडित किया जाता है. पर उन्हें समाज के हाशिये पर ढकेलने या जेल में डालने मात्र से ही समस्या का समाधान नहीं होगा. इसके विपरीत इससे स्वास्थ्य समस्याएं और विकराल होंगी जिससे पश्चिम अफ्रीका की पहले से काम के बोझ से दबी न्यायिक व्यवस्था पर और भारी दबाव पड़ेगा.
इसकी बजाए कमीशन की रिपोर्ट में नशीली दवाओं के दुरुपयोग से निपटने के लिए अलग तरीका सुझाया गया है. इसमें इसे अपराध-न्याय मुद्दे के रूप में नहीं बल्कि जन-स्वास्थ्य समस्या के तौर पर देखा गया है. इसका अर्थ है कि नशीली दवाओं की लत के उपचार की सुविधाओं व कार्यक्रमों के लगभग पूर्ण अभाव को दूर किया जाए और दवाओं के दुरुपयोग के नियंत्रण व निगरानी के लिए प्रशिक्षित कर्मियों की नियुक्ति की जाए.
कमीशन को ज्ञात है कि पहले से खस्ताहाल स्वास्थ्य-सेवा बजटों पर और भी अन्य जरूरी मांगों का दबाव है. लेकिन इस चुनौती का इतना अधिक महत्त्व है - और इससे पार पाने में विफलता के गंभीर परिणाम होंगे - कि कमीशन का सुझाव है कि इस पूरे क्षेत्र में न्यूनतम मानक वाली किसी दवा-उपचार नीति को तुरंत अपनाया जाए.
इसमें दवाओं की लत के उपचार व संबंधित स्वास्थ्य सेवाओं की स्थापना शामिल हैं. नुकसान को कम करने वाले उपाय भी लागू करने होंगे, यथा सुइयों की अदला-बदली के कार्यक्रम जो एचआईवी व दवाओं से जुड़ी मौतों को कम करने में अपनी उपयोगिता साबित कर चुके हैं. आज तक पूरे पश्चिम अफ्रीका में सेनेगल ही एकमात्र देश है जिसने अपने यहां सरकार द्वारा संचालित हानि-न्यूनीकरण कार्यक्रम को कुछ हद तक लागू किया है.
नशीली दवाओं के प्रभाव से निपटने के लिए जानकारीपूर्ण, मानवीय तथा सुसंगठित नीति अपनाने के लिए नेतृत्व की जरूरत है जिसके लिए इस क्षेत्र के सभी देशों को मिल-जुल कर प्रयास करने होंगे. इसके लिए कमीशन सरकारों, नागरिक-सामाजिक समूहों तथा क्षेत्रीय संगठनों से साझी-प्रतिबद्घता का आवाह्न करता है. हम इस मुद्दे को और अधिक दरी के नीचे नहीं छिपा सकते हैं और ना ही ये कह सकते हैं कि यह हमारी समस्या नहीं है.
रिपोर्ट इन प्रयासों के लिए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से और अधिक समर्थन का आग्रह करती है. पश्चिमी अफ्रीकी देश अवैध नशीली दवाओं के उत्पादन व सेवन के प्रमुख केंद्र हैं. इन देशों को नशीली दवाओं की रोकथाम, उपचार तथा नुकसान को कम करने के उपायों पर धन खर्च करना चाहिए बजाए इसके कि वे धरपकड़ और कानून लागू करने में निवेश करें.
दिशा परिवर्तन के बगैर पश्चिमी अफ्रीका में दवाओं की तस्करी, उत्पादन व दुरुपयोग संस्थाओं की अहमियत कम करते रहेंगे, जन स्वास्थ्य को खतरा उत्पन्न करेंगे तथा विकास व तरक्की को नष्ट करते रहेंगे. लेकिन दवाओं संबंधी कानूनों में सुधार, पुराने नशेडि़यों को उपचार की सुविधाएं प्रदान करने तथा ऊंची हैसियत वाले तस्करों को पकड़ने से समुदायों, परिवारों व व्यक्तियों पर नशीली दवाओं के विनाशकारी प्रभाव कम होंगे. राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों पर पुनः दृष्टि केंद्रित करने का साहस होना चाहिए. इससे हम यह सुनिश्चित कर सकेंगे कि हमारे युवा स्वस्थ व सुरक्षित रूप से पनप सकें.