वाशिंगटन, डीसी –ज्यों-ज्यों देश, विशेष रूप से जी-20 के देश, पाइपलाइनों, बांधों, पानी और बिजली की व्यवस्थाओं, और सड़क नेटवर्कों जैसे कई लाख (चाहे कई अरब या कई खरब न भी सही) डॉलरों के बुनियादी ढांचों की पहल में भारी निवेश करने के लिए निजी क्षेत्र को जुटाने की पहल कर रहे हैं, लगता है कि हम मेगा परियोजनाओं के एक नए युग में प्रवेश कर रहे हैं।
पहले से ही, मेगा परियोजनाओं पर खर्च की राशि लगभग $6-9 ट्रिलियन प्रति वर्ष है, जो वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 8% है, इस रूप में यह “मानव इतिहास में निवेश में सबसे बड़ी तेजी” बन गई है। और भू-राजनीति, आर्थिक विकास की खोज, नए बाजारों की खोज और प्राकृतिक संसाधनों की खोज के कारण बड़े पैमाने की बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में और भी अधिक धन लगाने के लिए प्रोत्साहन मिल रहा है। लगता है कि ऐसी परियोजनाओं में इस संभावित अभूतपूर्व विस्फोट के दोराहे पर, दुनिया भर के नेता और उधारदाता अतीत में सीखे गए महंगे सबकों से काफी हद तक अनजान बने हुए हैं।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि बुनियादी ढांचे में निवेशों से वास्तविक आवश्यकताओं की पूर्ति हो सकती है, भोजन, पानी, और ऊर्जा की मांग में प्रत्याशित भारी बढ़ोतरी को पूरा करने में मदद मिल सकती है। लेकिन जब तक मेगा परियोजनाओं में विस्फोट को सावधानीपूर्वक पुनः निर्देशित और प्रबंधित नहीं किया जाता है, इस प्रयास के गैर-उत्पादक और असतत होने की संभावना हो सकती है। लोकतांत्रिक नियंत्रणों के बिना, निवेशक लाभों का निजीकरण और हानियों का समाजीकरण कर सकते हैं, और साथ ही वे कार्बन-प्रधान और अन्य पर्यावरण और सामाजिक रूप से हानिकारक गतिविधियों में संलग्न हो सकते हैं।
शुरू में, लागत प्रभावशीलता का मुद्दा है। "छोटा सुंदर होता है" या "बड़ा अच्छा होता है" की विचारधारा को अपनाने के बजाय, देशों को "उचित स्तर" के ऐसे बुनियादी ढांचे का निर्माण करना चाहिए जो उसके उद्देश्यों के अनुकूल हो।
ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में प्रोफेसर, बेंट फ़्लाइव्बजर्ग ने कार्यक्रम प्रबंधन और आयोजना में विशेषज्ञता प्राप्त की, 70 वर्षों के डेटा का अध्ययन करने के बाद वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि "मेगा परियोजनाओं का कठोर नियम" है: वे लगभग हमेशा "बजट से अधिक, समय से अधिक, और हर बार अधिक होती हैं।" उन्होंने यह भी कहा है कि सर्वश्रेष्ठ परियोजनाओं के बजाय सबसे खराब परियोजनाओं का निर्माण होने के कारण, उन पर "सबसे अयोग्य के अस्तित्व में रहने" का नियम लागू होता है।
इस तथ्य के कारण यह जोखिम और भी बढ़ जाता है कि ये मेगा परियोजनाएं अधिकतर भू-राजनीति से संचालित होती हैं – न कि सावधानीयुक्त अर्थशास्त्र से। 2000 से 2014 तक, जब सकल घरेलू उत्पाद दुगुने से भी अधिक बढ़कर $75 ट्रिलियन हो गया, वैश्विक अर्थव्यवस्था में जी-7 देशों का अंश 65% से घटकर 45% हो गया। जब अंतर्राष्ट्रीय मंच इस पुनर्संतुलन के लिए स्वयं को ढालने लग गया है, तो संयुक्त राज्य अमेरिका को यह चिंता सताने लगी है कि उसके वर्चस्व को चीन के नेतृत्व वाले एशियाई आधारिक संरचना निवेश बैंक जैसे नए खिलाड़ियों और संस्थाओं द्वारा चुनौती दी जाएगी। इसकी प्रतिक्रिया में, विश्व बैंक और एशियाई विकास बैंक जैसी पश्चिमी नेतृत्व वाली संस्थाओं ने अपने बुनियादी ढांचे के निवेश प्रचालनों का तेज़ी से विस्तार करना शुरू कर दिया है, और वे खुले तौर पर एक आदर्श बदलाव के लिए अनुरोध कर रहे हैं।
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जी -20 भी, इस आशा में मेगा परियोजनाओं के शुभारंभ में तेजी ला रहा है कि वैश्विक विकास दरों को 2018 तक कम-से-कम 2% तक बढ़ाया जा सकेगा। ओईसीडी का अनुमान है कि 2030 तक बुनियादी ढांचे में $70 ट्रिलियन का अतिरिक्त निवेश करने की आवश्यकता होगी - यह औसत व्यय की दृष्टि से $4.5 ट्रिलियन प्रति वर्ष से थोड़ा अधिक होगा। तुलनात्मक रूप से, सतत विकास लक्ष्यों को पूरा करने के लिए इसके लिए अनुमानतः $2-3 ट्रिलियन प्रति वर्ष की आवश्यकता होगी। जाहिर है कि मेगा परियोजनाओं के मामले में अपव्यय, भ्रष्टाचार, और असतत सरकारी ऋणों की मात्रा बढ़ने की संभावना बहुत अधिक होती है।
जिस दूसरे मुद्दे पर विचार किया जाना चाहिए वह धरती की सीमाओं का है। जी-20 को लिखे गए मार्च 2015 के पत्र में वैज्ञानिकों, पर्यावरणविदों, और विचारक अग्रणियों के एक समूह ने चेतावनी दी है कि मेगा परियोजनाओं में अनियंत्रित रूप से निवेश करने से पर्यावरण को अपरिवर्तनीय और घातक नुकसान होने का जोखिम है। लेखकों ने यह स्पष्ट किया है कि "हम हर वर्ष, पहले से ही धरती के संसाधनों के लगभग डेढ़ गुना संसाधनों का उपभोग कर रहे हैं।" "बुनियादी ढांचे के विकल्पों का उपयोग इस स्थिति को ठीक करने के लिए किया जाना चाहिए, न कि बिगाड़ने के लिए।"
इसी तरह, जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल ने यह चेतावनी दी है कि "ऐसे बुनियादी ढांचे के विकास और टिकाऊ उत्पादों को बदलना मुश्किल या बहुत महंगा हो सकता है जो समाजों को ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जनों की राहों में फंसा देते हैं।" और वास्तव में, जी-20 ने कुछ सामाजिक, पर्यावरणीय, या जलवायु संबंधी मानदंडों को मेगा परियोजनाओं की "इच्छा सूची" में शामिल किया है जिसे प्रत्येक सदस्य देश तुर्की में नवंबर में इसके शिखर सम्मेलन में प्रस्तुत करेगा।
मेगा परियोजनाओं के मामले में तीसरी संभावित समस्या उनकी सरकारी-निजी भागीदारियों पर निर्भरता है। निवेशों पर बड़े पैमाने पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित करने के अंश के रूप में, विश्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, और अन्य बहुपक्षीय उधारदाताओं ने, अन्य बातों के अलावा, निजी निवेश को आकर्षित करने के लिए सामाजिक और आर्थिक बुनियादी ढांचे के नए परिसंपत्ति वर्गों को बनाकर, विकास वित्त को नया स्वरूप प्रदान करने का प्रयास शुरू किया है। विश्व बैंक समूह के अध्यक्ष जिम योंग किम ने कहा है कि "हमें संस्थागत निवेशकों द्वारा धारित कई मिलियन डॉलरों का लाभ उठाने और उन परिसंपत्तियों को परियोजनाओं में लगाने की जरूरत है।"
इन संस्थाओं को उम्मीद है कि वे जोखिम की भरपाई करने के लिए जनता के पैसे का उपयोग करके, लंबी अवधि के संस्थागत निवेशकों - म्यूचुअल फंड, बीमा कंपनियों, पेंशन निधियों, और सरकारी धन निधियों सहित - को आकर्षित कर पाएंगी - इन सभी के पास कुल मिलाकर अनुमानतः $93 ट्रिलियन की परिसंपत्तियों पर नियंत्रण है। उन्हें उम्मीद है कि इस विशाल पूंजी समूह का उपयोग करके वे बुनियादी ढांचे का विस्तार कर पाएंगी और विकास वित्त को ऐसे तरीकों से परिवर्तित कर पाएंगी जिनकी पहले कल्पना भी नहीं की जा सकती थी।
समस्या यह है कि सरकारी-निजी भागीदारियों के लिए यह आवश्यक होता है कि वे निवेश पर प्रतिस्पर्धात्मक लाभ प्रदान करें। परिणामस्वरूप, लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के शोधकर्ताओं के अनुसार, उन्हें [सूचना प्रौद्योगिकी] परियोजनाओं के लिए उपयुक्त साधन नहीं माना जाता, या जहां "सामाजिक सरोकारों के कारण उपयोगकर्ता प्रभारों पर प्रतिबंध लगाया जाता है जिसके कारण कोई परियोजना निजी क्षेत्र के लिए रुचिकर बन सकती है।" निजी निवेशक आय के प्रवाह की गारंटी के जरिए अपने निवेशों पर लाभ की दर को बनाए रखना चाहते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि कानूनों और विनियमों (पर्यावरण और सामाजिक आवश्यकताओं सहित) के कारण उनके मुनाफे में कोई कटौती नहीं होती है। इसमें जोखिम यह है कि लाभ के लिए खोज से जनहित को नुकसान पहुँचेगा।
अंततः, दीर्घकालिक निवेशों पर लागू होनेवाले नियमों में पर्यावरण संबंधी और सामाजिक गतिविधियों से संबंधित दीर्घाकालीन जोखिमों को प्रभावी रूप से शामिल नहीं किया जा सकता है जिसके लिए ट्रेड यूनियनों और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम द्वारा बल दिया जाता है। बुनियादी ढांचे में निवेशों को संविभागों में समूहित करने या विकास क्षेत्रों को परिसंपत्ति वर्गों में परिवर्तित करने से लाभों का निजीकरण और हानियों का भारी पैमाने पर समाजीकरण हो सकता है। इस प्रोत्साहन से असमानता के स्तरों में वृद्धि हो सकती है और लोकतंत्र कमजोर हो सकता है क्योंकि सरकारें संस्थागत निवेशकों से लाभ उठाने की स्थिति में नहीं होती हैं - नागरिक तो बिल्कुल नहीं। सामान्य रूप से, व्यापार नियमों और समझौतों के कारण ये समस्याएं और भी बढ़ जाती हैं क्योंकि इनमें निवेशकों के हितों को आम नागरिकों के हितों से ऊपर रखा जाता है।
जी-20 को लिखे गए इन लेखकों के पत्र के शब्दों में, बिना कोई जांच-पड़ताल किए, मेगा परियोजनाओं में आगे बढ़ने में “एक ख़तरनाक योजना पर सरपट दौड़ने का जोखिम है।” यह महत्वपूर्ण है कि हम सुनिश्चित करें कि विकास वित्त में कोई भी परिवर्तन इस तरह से किया जाना चाहिए कि उसमें मानव अधिकारों का समर्थन हो और पृथ्वी की रक्षा हो।
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Anders Åslund
considers what the US presidential election will mean for Ukraine, says that only a humiliating loss in the war could threaten Vladimir Putin’s position, urges the EU to take additional steps to ensure a rapid and successful Ukrainian accession, and more.
वाशिंगटन, डीसी –ज्यों-ज्यों देश, विशेष रूप से जी-20 के देश, पाइपलाइनों, बांधों, पानी और बिजली की व्यवस्थाओं, और सड़क नेटवर्कों जैसे कई लाख (चाहे कई अरब या कई खरब न भी सही) डॉलरों के बुनियादी ढांचों की पहल में भारी निवेश करने के लिए निजी क्षेत्र को जुटाने की पहल कर रहे हैं, लगता है कि हम मेगा परियोजनाओं के एक नए युग में प्रवेश कर रहे हैं।
पहले से ही, मेगा परियोजनाओं पर खर्च की राशि लगभग $6-9 ट्रिलियन प्रति वर्ष है, जो वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 8% है, इस रूप में यह “मानव इतिहास में निवेश में सबसे बड़ी तेजी” बन गई है। और भू-राजनीति, आर्थिक विकास की खोज, नए बाजारों की खोज और प्राकृतिक संसाधनों की खोज के कारण बड़े पैमाने की बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में और भी अधिक धन लगाने के लिए प्रोत्साहन मिल रहा है। लगता है कि ऐसी परियोजनाओं में इस संभावित अभूतपूर्व विस्फोट के दोराहे पर, दुनिया भर के नेता और उधारदाता अतीत में सीखे गए महंगे सबकों से काफी हद तक अनजान बने हुए हैं।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि बुनियादी ढांचे में निवेशों से वास्तविक आवश्यकताओं की पूर्ति हो सकती है, भोजन, पानी, और ऊर्जा की मांग में प्रत्याशित भारी बढ़ोतरी को पूरा करने में मदद मिल सकती है। लेकिन जब तक मेगा परियोजनाओं में विस्फोट को सावधानीपूर्वक पुनः निर्देशित और प्रबंधित नहीं किया जाता है, इस प्रयास के गैर-उत्पादक और असतत होने की संभावना हो सकती है। लोकतांत्रिक नियंत्रणों के बिना, निवेशक लाभों का निजीकरण और हानियों का समाजीकरण कर सकते हैं, और साथ ही वे कार्बन-प्रधान और अन्य पर्यावरण और सामाजिक रूप से हानिकारक गतिविधियों में संलग्न हो सकते हैं।
शुरू में, लागत प्रभावशीलता का मुद्दा है। "छोटा सुंदर होता है" या "बड़ा अच्छा होता है" की विचारधारा को अपनाने के बजाय, देशों को "उचित स्तर" के ऐसे बुनियादी ढांचे का निर्माण करना चाहिए जो उसके उद्देश्यों के अनुकूल हो।
ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में प्रोफेसर, बेंट फ़्लाइव्बजर्ग ने कार्यक्रम प्रबंधन और आयोजना में विशेषज्ञता प्राप्त की, 70 वर्षों के डेटा का अध्ययन करने के बाद वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि "मेगा परियोजनाओं का कठोर नियम" है: वे लगभग हमेशा "बजट से अधिक, समय से अधिक, और हर बार अधिक होती हैं।" उन्होंने यह भी कहा है कि सर्वश्रेष्ठ परियोजनाओं के बजाय सबसे खराब परियोजनाओं का निर्माण होने के कारण, उन पर "सबसे अयोग्य के अस्तित्व में रहने" का नियम लागू होता है।
इस तथ्य के कारण यह जोखिम और भी बढ़ जाता है कि ये मेगा परियोजनाएं अधिकतर भू-राजनीति से संचालित होती हैं – न कि सावधानीयुक्त अर्थशास्त्र से। 2000 से 2014 तक, जब सकल घरेलू उत्पाद दुगुने से भी अधिक बढ़कर $75 ट्रिलियन हो गया, वैश्विक अर्थव्यवस्था में जी-7 देशों का अंश 65% से घटकर 45% हो गया। जब अंतर्राष्ट्रीय मंच इस पुनर्संतुलन के लिए स्वयं को ढालने लग गया है, तो संयुक्त राज्य अमेरिका को यह चिंता सताने लगी है कि उसके वर्चस्व को चीन के नेतृत्व वाले एशियाई आधारिक संरचना निवेश बैंक जैसे नए खिलाड़ियों और संस्थाओं द्वारा चुनौती दी जाएगी। इसकी प्रतिक्रिया में, विश्व बैंक और एशियाई विकास बैंक जैसी पश्चिमी नेतृत्व वाली संस्थाओं ने अपने बुनियादी ढांचे के निवेश प्रचालनों का तेज़ी से विस्तार करना शुरू कर दिया है, और वे खुले तौर पर एक आदर्श बदलाव के लिए अनुरोध कर रहे हैं।
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जिस दूसरे मुद्दे पर विचार किया जाना चाहिए वह धरती की सीमाओं का है। जी-20 को लिखे गए मार्च 2015 के पत्र में वैज्ञानिकों, पर्यावरणविदों, और विचारक अग्रणियों के एक समूह ने चेतावनी दी है कि मेगा परियोजनाओं में अनियंत्रित रूप से निवेश करने से पर्यावरण को अपरिवर्तनीय और घातक नुकसान होने का जोखिम है। लेखकों ने यह स्पष्ट किया है कि "हम हर वर्ष, पहले से ही धरती के संसाधनों के लगभग डेढ़ गुना संसाधनों का उपभोग कर रहे हैं।" "बुनियादी ढांचे के विकल्पों का उपयोग इस स्थिति को ठीक करने के लिए किया जाना चाहिए, न कि बिगाड़ने के लिए।"
इसी तरह, जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल ने यह चेतावनी दी है कि "ऐसे बुनियादी ढांचे के विकास और टिकाऊ उत्पादों को बदलना मुश्किल या बहुत महंगा हो सकता है जो समाजों को ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जनों की राहों में फंसा देते हैं।" और वास्तव में, जी-20 ने कुछ सामाजिक, पर्यावरणीय, या जलवायु संबंधी मानदंडों को मेगा परियोजनाओं की "इच्छा सूची" में शामिल किया है जिसे प्रत्येक सदस्य देश तुर्की में नवंबर में इसके शिखर सम्मेलन में प्रस्तुत करेगा।
मेगा परियोजनाओं के मामले में तीसरी संभावित समस्या उनकी सरकारी-निजी भागीदारियों पर निर्भरता है। निवेशों पर बड़े पैमाने पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित करने के अंश के रूप में, विश्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, और अन्य बहुपक्षीय उधारदाताओं ने, अन्य बातों के अलावा, निजी निवेश को आकर्षित करने के लिए सामाजिक और आर्थिक बुनियादी ढांचे के नए परिसंपत्ति वर्गों को बनाकर, विकास वित्त को नया स्वरूप प्रदान करने का प्रयास शुरू किया है। विश्व बैंक समूह के अध्यक्ष जिम योंग किम ने कहा है कि "हमें संस्थागत निवेशकों द्वारा धारित कई मिलियन डॉलरों का लाभ उठाने और उन परिसंपत्तियों को परियोजनाओं में लगाने की जरूरत है।"
इन संस्थाओं को उम्मीद है कि वे जोखिम की भरपाई करने के लिए जनता के पैसे का उपयोग करके, लंबी अवधि के संस्थागत निवेशकों - म्यूचुअल फंड, बीमा कंपनियों, पेंशन निधियों, और सरकारी धन निधियों सहित - को आकर्षित कर पाएंगी - इन सभी के पास कुल मिलाकर अनुमानतः $93 ट्रिलियन की परिसंपत्तियों पर नियंत्रण है। उन्हें उम्मीद है कि इस विशाल पूंजी समूह का उपयोग करके वे बुनियादी ढांचे का विस्तार कर पाएंगी और विकास वित्त को ऐसे तरीकों से परिवर्तित कर पाएंगी जिनकी पहले कल्पना भी नहीं की जा सकती थी।
समस्या यह है कि सरकारी-निजी भागीदारियों के लिए यह आवश्यक होता है कि वे निवेश पर प्रतिस्पर्धात्मक लाभ प्रदान करें। परिणामस्वरूप, लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के शोधकर्ताओं के अनुसार, उन्हें [सूचना प्रौद्योगिकी] परियोजनाओं के लिए उपयुक्त साधन नहीं माना जाता, या जहां "सामाजिक सरोकारों के कारण उपयोगकर्ता प्रभारों पर प्रतिबंध लगाया जाता है जिसके कारण कोई परियोजना निजी क्षेत्र के लिए रुचिकर बन सकती है।" निजी निवेशक आय के प्रवाह की गारंटी के जरिए अपने निवेशों पर लाभ की दर को बनाए रखना चाहते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि कानूनों और विनियमों (पर्यावरण और सामाजिक आवश्यकताओं सहित) के कारण उनके मुनाफे में कोई कटौती नहीं होती है। इसमें जोखिम यह है कि लाभ के लिए खोज से जनहित को नुकसान पहुँचेगा।
अंततः, दीर्घकालिक निवेशों पर लागू होनेवाले नियमों में पर्यावरण संबंधी और सामाजिक गतिविधियों से संबंधित दीर्घाकालीन जोखिमों को प्रभावी रूप से शामिल नहीं किया जा सकता है जिसके लिए ट्रेड यूनियनों और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम द्वारा बल दिया जाता है। बुनियादी ढांचे में निवेशों को संविभागों में समूहित करने या विकास क्षेत्रों को परिसंपत्ति वर्गों में परिवर्तित करने से लाभों का निजीकरण और हानियों का भारी पैमाने पर समाजीकरण हो सकता है। इस प्रोत्साहन से असमानता के स्तरों में वृद्धि हो सकती है और लोकतंत्र कमजोर हो सकता है क्योंकि सरकारें संस्थागत निवेशकों से लाभ उठाने की स्थिति में नहीं होती हैं - नागरिक तो बिल्कुल नहीं। सामान्य रूप से, व्यापार नियमों और समझौतों के कारण ये समस्याएं और भी बढ़ जाती हैं क्योंकि इनमें निवेशकों के हितों को आम नागरिकों के हितों से ऊपर रखा जाता है।
जी-20 को लिखे गए इन लेखकों के पत्र के शब्दों में, बिना कोई जांच-पड़ताल किए, मेगा परियोजनाओं में आगे बढ़ने में “एक ख़तरनाक योजना पर सरपट दौड़ने का जोखिम है।” यह महत्वपूर्ण है कि हम सुनिश्चित करें कि विकास वित्त में कोई भी परिवर्तन इस तरह से किया जाना चाहिए कि उसमें मानव अधिकारों का समर्थन हो और पृथ्वी की रक्षा हो।