सिएटल– कुछ साल पहले, मेलिंडा और मैंने भारत के बिहार में चावल उगानेवाले किसानों के एक समूह के साथ दौरा किया था जो सबसे अधिक बाढ़ की आशंका वाला क्षेत्र है। वे सभी बेहद गरीब थे और उस चावल पर निर्भर करते थे जिसे वे अपने परिवार को खिलाने और उसका भरण-पोषण करने के लिए उगाते थे। हर साल मानसून की बारिशें शुरू होने पर नदियों में उफान आ जाता था, और उनके खेतों में बाढ़ आ जाने से उनकी फसलों के बर्बाद होने का ख़तरा पैदा हो जाता था। फिर भी, वे इस उम्मीद पर सब कुछ दाँव पर लगाने के लिए तैयार रहते थे कि इस बार उनके खेत को बख्श दिया जाएगा। यह ऐसी बाजी होती थी जिसमें वे अक्सर हार जाते थे। जब उनकी फसलें बर्बाद हो जाती थीं तो वे अपने परिवारों का पेट भरने के लिए छोटे-मोटे काम की तलाश में शहरों की ओर पलायन कर जाते थे। अगले साल वे फिर लौट आते थे - और फिर से फसल बोने के लिए तैयार हो जाते थे - हालाँकि अक्सर वे छोड़कर जाने के समय की तुलना में अधिक गरीब हो चुके होते थे।
हमारा दौरा इस बात की भारी चेतावनी थी कि दुनिया के सबसे गरीब किसानों के लिए उनका जीवन नट के रस्सी पर चलने जैसा है जिसमें कोई सुरक्षा नहीं होती है। उन्हें अमीर देशों में किसानों को मिलनेवाले बेहतर बीजों, खाद, सिंचाई प्रणालियों, और अन्य लाभकारी प्रौद्योगिकियों जैसी कोई सुविधाएँ नहीं मिलती हैं - और उन्हें हानियों से रक्षा के लिए फसल बीमा की सुविधा भी नहीं मिलती है। सूखा, बाढ़, या बीमारी जैसा दुर्भाग्य का बस एक झटका उन्हें गरीबी और भुखमरी में गहरे धकेलने के लिए पर्याप्त होता है।
अब, जलवायु परिवर्तन उनके जीवन में जोखिम की एक नई परत जोड़ने के लिए मुँह बाये बैठा है। आगामी दशकों में विशेष रूप से उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में बढ़ते तापमानों के कारण कृषि के क्षेत्र में भारी रुकावटें आएंगी। बहुत कम बारिश होने या बहुत ज्यादा बारिश होने से फसलें नहीं उगेंगी। गर्म जलवायु में कीट पनपेंगे और फसलों को नष्ट कर देंगे।
अमीर देशों में भी किसानों को परिवर्तनों का अनुभव होगा। लेकिन इन जोखिमों का प्रबंध करने के लिए उन्हें उपकरण और समर्थन उपलब्ध हैं। दुनिया के सबसे गरीब किसान हर दिन काम के लिए हाज़िर होते हैं और ज्यादातर उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ता है। यही कारण है कि जलवायु परिवर्तन से जो भी लोग पीड़ित होंगे उनमें से इन लोगों के सबसे अधिक पीड़ित होने की संभावना है।
गरीब किसानों को इन परिवर्तनों की मार तो झेलनी पड़ेगी लेकिन साथ ही बढ़ती हुई जनसंख्या को खिलाने के लिए दुनिया को उनकी मदद की जरूरत भी होगी। 2050 तक वैश्विक खाद्य मांग में 60% की वृद्धि होने की उम्मीद है। फसलों में कमी होने से वैश्विक खाद्य प्रणाली पर दबाव पड़ेगा, भुखमरी बढ़ेगी और पिछली आधी सदी के दौरान दुनिया ने गरीबी के खिलाफ जो भारी प्रगति की है वह मटियामेट हो जाएगी।
मुझे पूरा भरोसा है कि हम जलवायु परिवर्तन के सबसे खराब प्रभावों से बच सकते हैं और दुनिया को अनाज दे सकते हैं - बशर्ते हम अभी से काम करना शुरू कर दें। सरकारों के लिए इस बात की तत्काल आवश्यकता है कि वे ऐसे नए स्वच्छ-ऊर्जा नवाचारों में निवेश करें जिनसे ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जनों में नाटकीय रूप से कमी होगी और बढ़ते तापमानों को रोका जा सकेगा। साथ ही, हमें यह समझ लेने की ज़रूरत है कि अधिक गर्म तापमानों के सभी प्रभावों को रोकने के मामले में पहले ही बहुत देर हो चुकी है। भले ही दुनिया अगले सप्ताह किसी सस्ते, स्वच्छ ऊर्जा के स्रोत की खोज कर भी ले, तो भी उसे अपनी जीवाश्म ईंधन-चालित आदतों को दूर करने और कार्बन-मुक्त भविष्य की ओर जाने में समय लगेगा। इसीलिए दुनिया के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह सबसे गरीब लोगों की अनुकूलन में मदद करने के प्रयासों में निवेश करे।
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उन्हें जिन साधनों की आवश्यकता होगी उनमें से अधिकतर बहुत बुनियादी हैं - खाद्य उत्पादन बढ़ाने और अधिक आय अर्जित करने के लिए उन्हें इन चीज़ों की जरूरत है: वित्तपोषण, बेहतर बीज, उर्वरक, प्रशिक्षण, और ऐसे बाजार जिनमें वे अपनी उगाई हुई चीज़ों को बेच सकें।
अन्य साधन नए हैं और बदलते हुए मौसम की मांग के अनुरूप हैं। गेट्स फाउंडेशन और उसके सहयोगियों ने सूखे या बाढ़ के समय के दौरान भी बीज की नई किस्मों को विकसित करने के लिए मिलकर काम किया है। उदाहरण के लिए, बिहार में मैं जिन चावल किसानों से मिला, वे अब बाढ़-सहिष्णु चावल की एक नई किस्म पैदा कर रहे हैं – जिसका नाम "स्कूबा" चावल रखा गया है - जो दो सप्ताह तक पानी के भीतर बना रह सकता है। यदि मौसम के स्वरूप में बदलाव से उनके क्षेत्र में अधिक बाढ़ आती है तो वे इसके लिए पहले से ही तैयार हैं। चावल की ऐसी अन्य किस्में विकसित की जा रही हैं जो सूखे, गर्मी, सर्दी, और नमक के भारी संदूषण जैसी मिट्टी की समस्याओं का सामना कर सकें।
इन सभी प्रयासों में जीवन को बदलने की शक्ति है। आम तौर पर यह देखा जाता है कि किसान अपनी फसलों और आयों को तब दुगुना या तिगुना कर लेते हैं जब उन्हें अमीर दुनिया के किसानों को बिना मांगे मिलनेवाली प्रगति तक पहुँच मिलने लगती है। इस नई समृद्धि से उन्हें अपने आहारों में सुधार करने, अपने खेतों में निवेश करने, और अपने बच्चों को स्कूल भेजने में मदद मिलती है। इससे उन्हें अपने तलवार की धार जैसे जीवन से हटकर जिंदगी जीने का मौका मिलता है, और उनमें सुरक्षा की भावना आती है चाहे उनकी फसल खराब भी क्यों न हो जाए।
जलवायु परिवर्तन से ऐसे खतरे भी होंगे जिनका हम पूर्वानुमान नहीं लगा सकते। इसके लिए तैयार रहने के लिए, दुनिया को बीजों के अनुसंधान में तेजी लाने और छोटे किसानों के लिए समर्थन देने की जरूरत है। किसानों की मदद करने के लिए सबसे उत्साहजनक नवाचार उपग्रह प्रौद्योगिकी है। अफ्रीका में, शोधकर्ता मिट्टी के विस्तृत नक्शे बनाने के लिए उपग्रह चित्रों का उपयोग कर रहे हैं जो किसानों को यह जानकारी दे सकते हैं कि उनकी धरती पर कौन सी किस्में पनपेंगी।
फिर भी, किसी बेहतर बीज या किसी नई तकनीक से कृषक परिवारों के जीवन को नहीं बदला जा सकता जब तक यह उनके हाथ में न हो। एक गैर-लाभकारी समूह, एक एकड़ फंड सहित कई संगठन यह सुनिश्चित करने के तरीके खोज रहे हैं कि किसान इन समाधानों का लाभ उठाते हैं। एक एकड़ फंड 200,000 से अधिक अफ्रीकी किसानों के साथ मिलकर काम करता है और उन्हें वित्तपोषण, उपकरणों, और प्रशिक्षण तक पहुँच प्रदान करता है। 2020 तक, उनका लक्ष्य एक लाख किसानों तक पहुँचने का है।
इस वर्ष के वार्षिक पत्र में, मेलिंडा और मैंने यह शर्त लगाई कि अफ्रीका अगले 15 वर्षों में खुद को खिलाने में सक्षम हो जाएगा। जलवायु परिवर्तन के जोखिमों के बावजूद, मैं इस शर्त पर अडिग हूँ।
हाँ, गरीब किसानों के लिए यह मुश्किल बात है। उनके जीवन ऐसी पहेलियाँ हैं जिनके सही बीज बोने और सही उर्वरक का उपयोग करने से लेकर प्रशिक्षण प्राप्त करने और अपनी फसल को बेचने के लिए कोई जगह होने जैसे बहुत से टुकड़े अभी जोड़े जाने हैं। अगर सिर्फ एक टुकड़ा अपनी जगह से अलग हो जाता है, तो उन सबके जीवन बर्बाद हो सकते हैं।
मैं जानता हूँ कि दुनिया के पास वह सब है जिससे आज उनके सम्मुख आनेवाली इन दोनों चुनौतियों और कल आनेवाली चुनौतियों का सामना करने के लिए उन टुकड़ों को सही जगह पर लगाने में मदद की जा सकती है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मैं यह जानता हूँ कि किसानों को भी यह बात पता है।
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Geopolitical turmoil must not be allowed to distract global decision-makers from the urgent imperative of tackling climate change. There is no excuse for letting COP29 conclude without delivering ambitious, credible financing commitments to support climate action – including the clean-energy transition – in developing economies.
hopes that geopolitical uncertainty will not thwart ambitious, credible climate-finance commitments.
Nicholas Agar
urges us not to put too much stock in Musk-style “Mars-shots,” describes how the humanities needs to evolve in our time of disorienting change, suggests that humanists might soon get bored with artificial intelligence, and more.
To prevent unnecessary deaths from treatable diseases, the World Health Organization must be empowered to fulfill its mandate as the leading global emergency responder. If its $7.1 billion fundraising campaign falls short, we risk being caught unprepared again when the next pandemic arrives.
calls on wealthy countries to ensure that the World Health Organization can confront emerging threats.
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सिएटल– कुछ साल पहले, मेलिंडा और मैंने भारत के बिहार में चावल उगानेवाले किसानों के एक समूह के साथ दौरा किया था जो सबसे अधिक बाढ़ की आशंका वाला क्षेत्र है। वे सभी बेहद गरीब थे और उस चावल पर निर्भर करते थे जिसे वे अपने परिवार को खिलाने और उसका भरण-पोषण करने के लिए उगाते थे। हर साल मानसून की बारिशें शुरू होने पर नदियों में उफान आ जाता था, और उनके खेतों में बाढ़ आ जाने से उनकी फसलों के बर्बाद होने का ख़तरा पैदा हो जाता था। फिर भी, वे इस उम्मीद पर सब कुछ दाँव पर लगाने के लिए तैयार रहते थे कि इस बार उनके खेत को बख्श दिया जाएगा। यह ऐसी बाजी होती थी जिसमें वे अक्सर हार जाते थे। जब उनकी फसलें बर्बाद हो जाती थीं तो वे अपने परिवारों का पेट भरने के लिए छोटे-मोटे काम की तलाश में शहरों की ओर पलायन कर जाते थे। अगले साल वे फिर लौट आते थे - और फिर से फसल बोने के लिए तैयार हो जाते थे - हालाँकि अक्सर वे छोड़कर जाने के समय की तुलना में अधिक गरीब हो चुके होते थे।
हमारा दौरा इस बात की भारी चेतावनी थी कि दुनिया के सबसे गरीब किसानों के लिए उनका जीवन नट के रस्सी पर चलने जैसा है जिसमें कोई सुरक्षा नहीं होती है। उन्हें अमीर देशों में किसानों को मिलनेवाले बेहतर बीजों, खाद, सिंचाई प्रणालियों, और अन्य लाभकारी प्रौद्योगिकियों जैसी कोई सुविधाएँ नहीं मिलती हैं - और उन्हें हानियों से रक्षा के लिए फसल बीमा की सुविधा भी नहीं मिलती है। सूखा, बाढ़, या बीमारी जैसा दुर्भाग्य का बस एक झटका उन्हें गरीबी और भुखमरी में गहरे धकेलने के लिए पर्याप्त होता है।
अब, जलवायु परिवर्तन उनके जीवन में जोखिम की एक नई परत जोड़ने के लिए मुँह बाये बैठा है। आगामी दशकों में विशेष रूप से उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में बढ़ते तापमानों के कारण कृषि के क्षेत्र में भारी रुकावटें आएंगी। बहुत कम बारिश होने या बहुत ज्यादा बारिश होने से फसलें नहीं उगेंगी। गर्म जलवायु में कीट पनपेंगे और फसलों को नष्ट कर देंगे।
अमीर देशों में भी किसानों को परिवर्तनों का अनुभव होगा। लेकिन इन जोखिमों का प्रबंध करने के लिए उन्हें उपकरण और समर्थन उपलब्ध हैं। दुनिया के सबसे गरीब किसान हर दिन काम के लिए हाज़िर होते हैं और ज्यादातर उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ता है। यही कारण है कि जलवायु परिवर्तन से जो भी लोग पीड़ित होंगे उनमें से इन लोगों के सबसे अधिक पीड़ित होने की संभावना है।
गरीब किसानों को इन परिवर्तनों की मार तो झेलनी पड़ेगी लेकिन साथ ही बढ़ती हुई जनसंख्या को खिलाने के लिए दुनिया को उनकी मदद की जरूरत भी होगी। 2050 तक वैश्विक खाद्य मांग में 60% की वृद्धि होने की उम्मीद है। फसलों में कमी होने से वैश्विक खाद्य प्रणाली पर दबाव पड़ेगा, भुखमरी बढ़ेगी और पिछली आधी सदी के दौरान दुनिया ने गरीबी के खिलाफ जो भारी प्रगति की है वह मटियामेट हो जाएगी।
मुझे पूरा भरोसा है कि हम जलवायु परिवर्तन के सबसे खराब प्रभावों से बच सकते हैं और दुनिया को अनाज दे सकते हैं - बशर्ते हम अभी से काम करना शुरू कर दें। सरकारों के लिए इस बात की तत्काल आवश्यकता है कि वे ऐसे नए स्वच्छ-ऊर्जा नवाचारों में निवेश करें जिनसे ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जनों में नाटकीय रूप से कमी होगी और बढ़ते तापमानों को रोका जा सकेगा। साथ ही, हमें यह समझ लेने की ज़रूरत है कि अधिक गर्म तापमानों के सभी प्रभावों को रोकने के मामले में पहले ही बहुत देर हो चुकी है। भले ही दुनिया अगले सप्ताह किसी सस्ते, स्वच्छ ऊर्जा के स्रोत की खोज कर भी ले, तो भी उसे अपनी जीवाश्म ईंधन-चालित आदतों को दूर करने और कार्बन-मुक्त भविष्य की ओर जाने में समय लगेगा। इसीलिए दुनिया के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह सबसे गरीब लोगों की अनुकूलन में मदद करने के प्रयासों में निवेश करे।
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अन्य साधन नए हैं और बदलते हुए मौसम की मांग के अनुरूप हैं। गेट्स फाउंडेशन और उसके सहयोगियों ने सूखे या बाढ़ के समय के दौरान भी बीज की नई किस्मों को विकसित करने के लिए मिलकर काम किया है। उदाहरण के लिए, बिहार में मैं जिन चावल किसानों से मिला, वे अब बाढ़-सहिष्णु चावल की एक नई किस्म पैदा कर रहे हैं – जिसका नाम "स्कूबा" चावल रखा गया है - जो दो सप्ताह तक पानी के भीतर बना रह सकता है। यदि मौसम के स्वरूप में बदलाव से उनके क्षेत्र में अधिक बाढ़ आती है तो वे इसके लिए पहले से ही तैयार हैं। चावल की ऐसी अन्य किस्में विकसित की जा रही हैं जो सूखे, गर्मी, सर्दी, और नमक के भारी संदूषण जैसी मिट्टी की समस्याओं का सामना कर सकें।
इन सभी प्रयासों में जीवन को बदलने की शक्ति है। आम तौर पर यह देखा जाता है कि किसान अपनी फसलों और आयों को तब दुगुना या तिगुना कर लेते हैं जब उन्हें अमीर दुनिया के किसानों को बिना मांगे मिलनेवाली प्रगति तक पहुँच मिलने लगती है। इस नई समृद्धि से उन्हें अपने आहारों में सुधार करने, अपने खेतों में निवेश करने, और अपने बच्चों को स्कूल भेजने में मदद मिलती है। इससे उन्हें अपने तलवार की धार जैसे जीवन से हटकर जिंदगी जीने का मौका मिलता है, और उनमें सुरक्षा की भावना आती है चाहे उनकी फसल खराब भी क्यों न हो जाए।
जलवायु परिवर्तन से ऐसे खतरे भी होंगे जिनका हम पूर्वानुमान नहीं लगा सकते। इसके लिए तैयार रहने के लिए, दुनिया को बीजों के अनुसंधान में तेजी लाने और छोटे किसानों के लिए समर्थन देने की जरूरत है। किसानों की मदद करने के लिए सबसे उत्साहजनक नवाचार उपग्रह प्रौद्योगिकी है। अफ्रीका में, शोधकर्ता मिट्टी के विस्तृत नक्शे बनाने के लिए उपग्रह चित्रों का उपयोग कर रहे हैं जो किसानों को यह जानकारी दे सकते हैं कि उनकी धरती पर कौन सी किस्में पनपेंगी।
फिर भी, किसी बेहतर बीज या किसी नई तकनीक से कृषक परिवारों के जीवन को नहीं बदला जा सकता जब तक यह उनके हाथ में न हो। एक गैर-लाभकारी समूह, एक एकड़ फंड सहित कई संगठन यह सुनिश्चित करने के तरीके खोज रहे हैं कि किसान इन समाधानों का लाभ उठाते हैं। एक एकड़ फंड 200,000 से अधिक अफ्रीकी किसानों के साथ मिलकर काम करता है और उन्हें वित्तपोषण, उपकरणों, और प्रशिक्षण तक पहुँच प्रदान करता है। 2020 तक, उनका लक्ष्य एक लाख किसानों तक पहुँचने का है।
इस वर्ष के वार्षिक पत्र में, मेलिंडा और मैंने यह शर्त लगाई कि अफ्रीका अगले 15 वर्षों में खुद को खिलाने में सक्षम हो जाएगा। जलवायु परिवर्तन के जोखिमों के बावजूद, मैं इस शर्त पर अडिग हूँ।
हाँ, गरीब किसानों के लिए यह मुश्किल बात है। उनके जीवन ऐसी पहेलियाँ हैं जिनके सही बीज बोने और सही उर्वरक का उपयोग करने से लेकर प्रशिक्षण प्राप्त करने और अपनी फसल को बेचने के लिए कोई जगह होने जैसे बहुत से टुकड़े अभी जोड़े जाने हैं। अगर सिर्फ एक टुकड़ा अपनी जगह से अलग हो जाता है, तो उन सबके जीवन बर्बाद हो सकते हैं।
मैं जानता हूँ कि दुनिया के पास वह सब है जिससे आज उनके सम्मुख आनेवाली इन दोनों चुनौतियों और कल आनेवाली चुनौतियों का सामना करने के लिए उन टुकड़ों को सही जगह पर लगाने में मदद की जा सकती है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मैं यह जानता हूँ कि किसानों को भी यह बात पता है।